________________
9/18 Description of two and a half continents (Arahāi Dwipa) contaning many rivers oceans, regions and mountains.
पुक्खरद्धु सो तेण पवुब्हइ तेत्थु वि बिण्णि सुरालय मणहर तेत्तिय सरि कुल-कुहरालंकिय अड्ढाइय दीवहिँ तियसायल सत्तरि सउ खेत्तहे खेयरहँ सत्तरि सर वहति गंगाइय चउदह सहसहिँ सहु एक्के क्की तीस कुलायल सुरतरु मंडिय देवारण्ण संति बहु-विह तहिँ भूआरण्ण वि भूअ मणोहर लवण-काल जलणिहि बहु जीवहँ एत्तिउ तिरिय-लोउ एउ अक्खिउ वलय सरिसु अण्णाण अलक्खइँ
पुणु गणहरहो जिणेसर सुब्बइ।। धगधगत रयणेहिँ स जिणहर।। दुगुणि सत्तरह खेतंकिय।। पंच परिट्ठिय विउल सिलायल।। तेत्तिय वरवेयड्ढ महीहरहँ।। सारस कलहंसाइँ विराइय।। कुलगिरि मुएवि महोवहि दुक्की।। भोयभूमि तह तीस अखंडिय।। सग्गु मुएविणु सुरकीलहिँ जहिँ।। णं गरुह रमणीहिँ वओहर।। बे वि मज्झि अढाइ दीवहँ।। जारिसु केवलणाणे लक्खिउ।। पंचाहिय चालीस जि लक्खई।।
घत्ता- अड्ढाई दीवहँ दो जलणिहिहु जिणिंदें।
भासिउ परमाणउँ पयणय चंद-दिणिंदें।। 162||
9/18 अढाई द्वीप, नदियों तथा पर्वतों, क्षेत्रों एवं समुद्रों का वर्णन इसीलिए उसे पुष्करार्द्ध द्वीप कहते हैं। जिनेश्वर ने गणधरदेव (स्वयम्भू) से कहा कि सुनो— उस (पुष्करार्द्ध) द्वीप में भी मनोहर धधकते रत्नों से जड़ित जिनेन्द्र के मंदिरों से मंडित दो सुमेरु पर्वत है। धातकी खंड के समान वहां भी उतनी ही नदियां गुफागृहों से अलंकृत कुलाचल और सत्रह से द्विगुणित अर्थात् चौंतीस क्षेत्र आदि हैं। ___ अढ़ाई द्वीपों में पाँच सुमेरु पर्वत है, जिनमें विपुल सिलातल स्थित हैं। एक सौ सत्तर क्षेत्रों में विद्याधरों के निवास स्थान और उतने ही उत्तम वैताढ्य पर्वत हैं। उनमें सारस, कलहंस आदि से शोभित सत्तर गंगा आदि नदियाँ बहती रहती हैं। एक-एक नदी की चौदह-चौदह हजार सहायक नदियाँ हैं, जो कुलाचलों से निकलती हैं और महासमुद्र में जा ढुकती है। तीस कुलाचल हैं, जो कल्पवृक्षों से मंडित हैं। वहाँ कुल अखंडित तीस भोग-भूमियाँ हैं। उनमें अनेक प्रकार के देवारण्य हैं, जिनमें देवगण स्वर्गों को छोड़कर क्रीड़ाएँ किया करते हैं। भूतों से मनोहर भूतारण्य वाले अढ़ाई द्वीपों में लवणोद एवं कालोद नाम के दो समुद्र हैं। ऐसा जिनेन्द्र ने अपने केवलज्ञान से लक्षित किया है और कहा है कि अज्ञानियों द्वारा अलक्षित वे वलयाकार पैंतालीस लाख योजन परिमाण हैं।
घत्ता- जिनके चरणों में चन्द्रमा एवं सूर्य नमस्कार करते रहते हैं ऐसे जिनेन्द्र देव ने अढाई द्वीप एवं दो समुद्र
बतलाए हैं। ।। 162 ||
192 :: पासणाहचरिउ