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Description of six Lakes situated on the top of six mountains.
जे पुब्बुत्त महाकुल गिरिवर ताहँ सिरोवर गहिर महादह ताहँ मज्झि पेम्मिण मणहारिणि णिवसहिँ सुरति तहिं णामंतरे णिग्गय ताहँ विहि खेयर रइ गिरि - सिहरहो पुव्वावर मग्गहिँ जंबूदीवहो दूणएँ जलणिहि बिणि लक्ख जंपियउ जिणेसहिँ जंबूदीवहो बाहिरि सोहइ बित्थरेण बारह - जोयण पिय उप्पर पुणु चत्तारि णिरिक्खिय मणिमय बेणि कोसट्टिय महियलि उहय-दिसहिँ उववेइय मंडिय देवरण ताहे मज्झि णिरंतर
सरह हिय परिणिवडिय हरिवर ।। थिय सुरसीमंतिणि कीलावह । । जोयण पमाण संठिय सिरधारिणि ।। महमहंत रय-नियर णिरंतरे ।। सुर-सरिआइँ करेहि महाणइ || बहीँ सा जल-लहरि - समग्गहिँ । । दिसि - विदिसिहिँ धारिय वड़वासिहि । । भवियण-मण- सिरि सरिस - दिणेसहिँ । । मणिमय वेइय जा मणु मोहइ || भज्ज-मण मोहिय विंतर-तिय ।। अट्ट जि उच्चत्तणेण समक्खिय ।। उप्पर वज्ज-रयणिमय णहयलि ।। पंचसय धणुह अखंडिय । । रयणरइय वरगिह वसइँ विंतर ।
घत्ता- चउवारहिँ सोहहिँ मणि-कणयमय कवाडहिँ । कीलागय सुरवर परपिहंति उग्घाडहि ।। 160 ||
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छह कुलाचलों पर स्थित छह महाहृदों का वर्णन
जहां शरभों (अष्टापदों) द्वारा निहत ( क्षत-विक्षत) श्रेष्ठ सिंहों के शव बिखरे पड़े थे ऐसे पूर्वोक्त हिमवान् आदि छह महा कुलाचलों के शिखरों पर गंभीर छह महाद्रह स्थित हैं, जो देवांगनाओं की क्रीड़ा के स्थल हैं। उनके ठीक बीचोंबीच प्रेमीजनों के मन का हरण करने वाला सुंदर तथा सिर पर धारण करने योग्य एक योजन प्रमाण पदम पुष्प है | महकते हुए प्रचुर पराग से व्याप्त जिस पदम के मध्य में देवांगनाएँ निवास करती हैं वहाँ की सुर-सरिताओं के तट पर खेचरगण रति-क्रीड़ाएँ करते रहते हैं। उन कुलाचलों के शिखरों के पूर्व एवं पश्चिम मार्ग से निकली हुई गंगा आदि महानदियाँ अपनी जल- लहरों से परिपूर्ण सदैव प्रवाहमान रहा करती है।
लवण समुद्र, जिसमें कि दिशा - विदिशाओं में बड़वानल विद्यमान है, वह जंबूद्वीप से दुगुणा है। भव्यजनों के चित्त रूपी कमल को विकसित करने वाले सूर्य के समान जिनेन्द्र देव ने उसे दो-दो लाख योजन का कहा है।
जंबूद्वीप के बाहर मणिमयी वेदियाँ सुशोभित हैं, जो मन को मोह लेती हैं। उनका विस्तार 12 योजन का है, उनकी सुंदरता व्यन्तर देवों की देवियों के मन को मोहित करने वाली है। ऊपरी भाग चार योजन का देखा गया है और ऊँचाई आठ योजन की कही गई है। वे मणिमयी वेदियाँ धरती में दो कोस प्रमाण स्थित हैं और ऊपर आकाश में बज्ररत्नमयी है। दोनों दिशाओं में जो पाँच-पाँच सौ धनुष प्रमाण की अखंडित उपवेदिकाएँ शोभित हैं उनके मध्य में सघन अरण्य है, जिनमें रत्नों के बने उत्तम भवन हैं, उनमें व्यंतर देव निवास करते हैं।
190 :: पासणाहचरिउ
घत्ता- वे भवन मणि और कनकमय किवाड़ वाले चौबारों से शोभायमान हैं और जो देव क्रीड़ाओं के लिये वहाँ आते हैं, वे ही उन बंद किवाड़ों को खोलते हैं ।। 160 ।।