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Lord Pārswa arrives in Sauripura town.
इणिसुविणु सावय-वयाइँ विकित्ति रिंदें णविवि देउ पडिवण्णइ बारह विह वयाइँ तहिँ अवसर चंदम - पहावईए पणवेष्पिणु पयपरमेसरासु संठिय थिर-मण संगहिवि दिक्ख पालंति सयल णिम्मलवयाइँ जिय मयणसेणु हयसेण-पुत्तु चउविह विसाल घण घाइचत्तु वस पहंजणु पुहविपालु
पयणिय सासय सिवसंपयाइँ ।। सम्मत्तु लइउ जिय-मयरकेउ ।। विणिवारिय संसारावयाइँ । । विकित्ति तणू पहावईए । । सोसिय संसार-सरोवरासु ।। अज्जि समीवे परिमुणिवि सिक्ख ।। अवणेवि सत्त वि मणगय भयाइँ ।। विहरंतउ चउविह संघ - जुत्तु ।। सउरीघुरवरे जिणणाहु पत्तु ।। असिवर णिल्लूरिय रिउ-कवालु ।।
घत्ता— जणवयणहो हयमयणहो अरुहागमु जाणेविणु ।
लहु णिग्गउ णं दिग्गउ हरिस-लच्छि माणेविणु ।। 173 ।।
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पार्श्व-प्रभु शौरीपुर नगर में प्रवेश करते हैं -
इस प्रकार श्रावक व्रतों को सुनकर राजा रविकीर्ति ने कामदेव को जीतने वाले प्रभु को नमस्कार कर सम्यक्त्व ग्रहण किया। उसने शाश्वत शिव-संपदा के देने वाले तथा संसार की आपदाओं को दूर करने वाले उन द्वादशविध श्रावक - व्रतों को धारण किया ।
204 :: पासणाहचरिउ
उसी अवसर पर चंद्रमा के समान कान्तिवाली रविकीर्ति की पुत्री प्रभावती ने संसार रूपी सरोवर को सुखा देने वाले परमेश्वर के चरणों में प्रणाम कर एक आर्यिका के समीप स्थिर मन से दीक्षा ग्रहण की और ( आगमों की) शिक्षा ग्रहण करने लगी।
उसने वहाँ सकलव्रतों का निर्मल रीति से पालन कर मन में बैठे हुए सातों प्रकार के भयों को दूर किया । मदन की सेना को जीतने वाले, हयसेन के पुत्र पार्श्वप्रभु ने चतुर्विध संघ सहित वहाँ से विहार किया और चलते-चलते चतुर्विध-संघ सहित तथा विशाल घन-घातिया कर्मों से रहित वे जिननाथ शौरीपुर पहुँचे। उस समय शौरीपुर में असिवर से रिपुजनों के कपालों को काट डालने वाला राजा प्रभंजन का राज्य था।
धत्ता— जनता के कथन से मदन को नष्ट करने वाले अर्हन्त का आगमन जानकर वह राजा उसी प्रकार शीघ्र ही निकला, मानों हर्ष रूपी लक्ष्मी को मानकर दिग्गज ही घर से निकला हो।। 173 ।।