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The effect of following the religious path.
भोउ वि लब्भइ जिण- देसिएण जं रूब रयणु जण-णयणहारि बाहु-बलु रयण-मयहरु - विहूइ सुसहोयर-सुअ-माया-पियाइँ एयायवत्त महिलच्छि-जुत्त देवगवत्थ- भोयण- विवित्त तं सव्वु वि जिण धम्मेण होइ किं बहुणा बिह
पिएण
गयराय भणिय धम्मेण वप्प
हरि- हलहरु- चक्कि - जिणेसराहँ
धम्मेण जीव संभीसिएण । पइवय गुणधारिणि सुहय-णारि । । वरवाहणु-उत्तम-कुल-पसूइ ।। सुहियण-सयणासण-तणुहियाइँ । । सिय-चल-चामर - पयडिय -पहुत्त ।। गाडय जण विरइय विविह- चित्त ।। किं बिणु बीएँ कणु लहइ कोइ ।। पुणु-पुणु वि सचित्ति वियप्पिए । । सविनय माणुसो विमुक्क दप्प || भौयाइँ होंति णिज्जिय- सराहँ ।।
पत्ता- जो घम्मेँ कय सम्मेँ विणु भोयइँ मणि वंछइ ।
सो सलिलइँ हय-कलिलइँ जलहरेण बिणु इच्छइ ।। 177 ।।
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धर्म-पालन के फल
हे जीव, उत्तम भोग भी जिनोपदिष्ट दया- धर्म से तथा पापों से डरने वालों को ही प्राप्त होते हैं । पतिव्रता, गुणधारिणी, सुखदात्री तथा लोगों के चित्त का अपहरण करने वाली रूप-रत्न से युक्त नारी, बाहुबल, रत्नमय- भवन, विभूतियाँ, उत्तमवाहन, उत्तमकुल में जन्म, उत्तम सहोदर भाई, पुत्र, माता-पिता, सुधीजन, उत्तम सुखद शयनासन, शरीर के हितकारक, पृथिवी रूपी लक्ष्मी पर एकछत्र शासन, श्वेत चंचल - चामरों से प्रकटित प्रभुत्व, देवोपम अंगप्रत्यंग, उत्तम वस्त्र, विविध प्रकार के भोजन, विविध प्रकार के चित्र-विचित्र, लोगों द्वारा किये जाने वाले मनोरंजक नाटक आदि ये सभी जैनधर्म के प्रभाव से ही प्राप्त होते हैं ।
208 :: पासणाहचरिउ
क्या कोई बिना बीज - वपन के ही धान्य उत्पन्न कर सकता है? व्यर्थ में अधिक कहने से क्या लाभ? अपने मन में बार-बार विकल्प करने से भी क्या लाभ?
हे निरभिमानी, गत राग- वीतराग द्वारा कथित धर्म के प्रभाव से ही विनयशील मनुष्य हरि, हलधर, चक्री, तथा कामविजेता जिनेश्वर आदि के भोग प्राप्त करते हैं।
घत्ता - जो पुरुष समताभाव उत्पन्न करने वाले धर्म के बिना ही मनवांछित भोगों को चाहता है, वह पुरुष मेघों के बिना ही पंकरहित निर्मल जल प्राप्त करने की कामना करता है ।। 177 ।।