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Description of Poorva - Videha Ksetra (region).
पुव्व - विदेह वसइ गिरिरायहो तो अवरेण ण केण वि दूसिय एक्के क्कहि दुगुणि-वसु वरिसइँ ताइँ वि अंतरियइँ गिरि- सरियहिँ दोहवि आउच्चत्तु सरीरहो दोहवि चतुरउ-काल पवट्टइ दोहवि चक्कालंकिय-करयल उप्पज्जहिँ हलहर-णारायण दोहवि धम्मक्खाणु पउंजहिँ सव्वकाल जिणवर तित्थंकर
पुव्व दिसहिँ कंचणमय कायहो । । अवर-विदेह विदेह-विहूसिय । । धण-कण-विहवहिँ बेण्णि वि सरिसइँ । मसि सम कसगुज्जल जल-भरियहिँ । । सत्ति-तेउ सरिसउ गिरि-धारहो ।। जिणमुह - णिग्गर धम्मु ण घट्टइ ।। परिपालिय छक्खंडवि महियल ।। समर परायण पडणारायण ।। भवियण-मण-गय संसउ भंजहिँ । । विहरइँ महिलि पाव- खयंकरु ।।
घत्ता— दोहवि परमाउसु पुव्व-कोडि णरणियरहँ । सय-पंच-धण्णुण्णय रूवं हाणिय खयरहँ ।। 159 ।।
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पूर्व - विदेह क्षेत्र का वर्णन -
कंचन (सुवर्ण) काय वाले गिरिराज (सुमेरु) की पूर्व दिशा में पूर्व विदेह क्षेत्र है। उसी की अवर (पश्चिम) दिशा में अपर- विदेह क्षेत्र है। ये दोनों क्षेत्र किसी भी प्रकार से दूषित नहीं है तथा विदेह से भूषित है। एक-एक विदेह में सोलह-सोलह क्षेत्र हैं, जो धन-धान्य और वैभव में समान है।
ये सोलह क्षेत्र पर्वतों और नदियों से अंतरित हैं, जिनमें मसी के समान काला तथा कांस्य के समान सफेद जल भरा हुआ है। दोनों ही गिरि-धारक क्षेत्रों में आयु, शरीर की ऊँचाई, शक्ति और तेज समान है।
दोनों क्षेत्रों में चतुर्थ काल प्रवर्तित होता रहता है और वहां निरंतर ही जिनेन्द्र भाषित धर्म का प्रचार होता रहता है, जो कभी भी नहीं घटता ।
दोनों ही क्षेत्रों में छः खंड पृथ्वी के प्रति पालक, चक्र से अलंकृत हाथ वाले चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण तथा समर-परायण प्रतिनारायण ये शलाका पुरुष उत्पन्न होते रहते हैं। दोनों ही क्षेत्रों में जिनवर तीर्थंकर सदाकाल धर्मोपदेश करते हुए जीवों के पापों का क्षय करते और भव्यजनों के मन के संशय का नाश करते हुए पृथ्वी पर विहार करते हैं।
घत्ता — दोनों ही क्षेत्रों में खेचरों के रूप का तिरस्कार करने वाले सुंदर मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु एक कोटि पूर्व वर्षों की तथा शरीर की ऊँचाई पाँच सौ धनुष प्रमाण है। ।। 159 ।।
पासणाहचरिउ :: 189