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9/19 Description of wanderings (Gatis) and limitations (sīmā) of human beings and the number of suns, moons, planets and constellations in different continents.
माणुसोत्तराद्धि जाम तं मुएवि उप्परंति अंत वारि-रासि जाम दीव-सायराण संख सा त एक्क रज्जु अंते जंवूदीव मज्झ एसु चारिलोय सायरम्मि वारहो रुणेभुसडि सत्त-चक्क काल-अद्धि एम दूण-दूण ताम सड्ढ दोण्णि दीव जाम भो णिरंतरं भमंति सेस दीव सायरेसु सव्व संति अंतरिक्ख णिच्चलंग घंट जेम
माणुसा वयंति ताम।। जक्ख-रक्ख देव जति ।। कीलमाण धत्ति ताम।। को करेइ ण असंख।। दो ससीण दीव अंते।। चित्तहारि सुपएसु।। भूरिहारउ हरम्मि।। वायइ विसाल संडि।। दोदह-चक्क पुक्खरद्धि ।। अंतिम समुदु ताम।। वासरेस चंद ताम।। वोम पंगणं कमंति।। कीलिया सुरामरेसु।। चंद सुज्ज राहु रिक्ख।। लंबमाण वोमि तेम।।
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घत्ता— एव्वहिँ पुण णिच्चलुविरएवि मणु सुणि गणहर ।
अविणस्सर जेत्तिय तिरियलोएत्थिय जिणहर ।। 163 ।।
9/19 मनुष्यों की गमन-सीमा आदि का वर्णन तथा विभिन्न द्वीपों एवं
समुद्रों में सूर्यों एवं चन्द्रमाओं की संख्या एवं उनकी गतिदो सागरों से युक्त मानुषोत्तर-पर्वत पर्यन्त ही मनुष्यगण जा सकते हैं। उनको लाँघकर ऊपर-ऊपर तो यक्ष, राक्षस या देव ही जाते हैं। वे अंतिम स्वयंभू रमण समुद्र पर्यन्त क्रीड़ा करते हुए ठहरते हैं। संख्या का ज्ञाता ऐसा कौन है, जो द्वीपों एवं सागरों की संख्या (गणना) कर सके। वे असंख्यात है और एक रज्जु पर्यन्त क्षेत्र हैं।
जंबूद्वीप का मध्यप्रदेश, जो कि चित्त को हरण करने वाला सुप्रदेश है, बहुत से जल-जंतुओं के समूहों से रम्य लवण समुद्र के चार-चार चांद सूरज हैं। बड़े-बड़े पदम खंड वाले धातकीखंड द्वीप में बारह-बारह चाँद सूरज हैं। कालोदधि में अट्ठाईस, पुष्करार्द्ध द्वीप में अड़तालीस चाँद-सरज हैं। इसके आगे के द्वीप-समद्रों में अन्तिम स्वयम्भरमण समुद्र पर्यन्त क्रमशः दुगुने-दुगुने चाँद-सूरज हैं। हे गणधर, वहाँ चंद्र, सूर्य निरंतर भ्रमण किया करते हैं और आकाश के प्रांगण में चलते हैं। शेष द्वीप-सागरों में, जिनमें कि असुर और देव क्रीड़ाएँ किया करते हैं, चाँद, सूर्य, राहू, नक्षत्र आदि सभी अंतरिक्ष में निश्चलांग एवं घंटा के समान आकाश में लटकते हुए स्थित हैं।
घत्ता- (जिनवर ने आगे कहा) हे गणधर, अब मन निश्चल करके तिर्यग्लोक में स्थित जितने भी अविनश्वर
(अकृत्रिम) चैत्यालय हैं, उनकी संख्या को भी सुनो।। 163 ।।
पासणाहचरिउ :: 193