Book Title: Pasnah Chariu
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 256
________________ 10 15 सासयलज्जिय संघहो सामिणि जिणवरदाहिण - दिसि ठिय गणहर पुणु कप्पामर वरकामिणियणु पुणु जोइस विंतर-भावणतिय पुणु भावण-विंतर-जोइस-सुर जाय पढम भवियण उवसामिणि ।। खयरासुरसुरणरहर-मणहर ।। पुणु परिहरिय रायविरइय गणु ।। अणुकमेण यि यि णिलयहिँ थिय ।। एय वि अणुकमेण ठिय भासुर ।। पुणु णरवरु णर-नियर पहाणउ ।। खरयर- कररुह मुहहणियाहिउ ।। पुणु सामरु कप्पामरराणउ पुणु तिरियहिँ परियरिउ मयाहिउ घत्ता - णट्टलमणहरण हरहिँ सक्खरहिँ पवरसिरिहरहिँ । गुणसम्म जसु लहइ तहो जिणसरणहो को गुण कहइ || 144 || Colophon इयसिरि पासचरित्ते रइयं कइ - सिरिहरेण गुणभरियं । अणुमण्णियं मणोज्जं णट्टल-णामेण भव्वेण । । छ । । केवलकिरणेक्कदिवायरस्स तित्थयर देव पासस्स । समवाइसरणकहणे अट्ठम संधी परिसमत्तो ।। छ । । संधि 8 ।। Blessings to Naṭṭala Sahu, the inspirer and guardian नय-विनय-विवेक-त्याग-भोगानुकम्पा । प्रशमयमयशं शीलता सत्कलानाथः । । गति-रति-सुमतीनां चाधिवासो त्रयोऽसौ । बुध- सदसि न सो नट्टिलो कीर्त्यतेकैः । । छ । । आर्यिका संघ की स्वामिनी एवं प्रथम श्रेणी की भव्यजनों को शांति देने वाली बन गई। जिनेन्द्र की दक्षिण दिशा में असुर, सुर और नरों के मन 'हरने वाले गणधर बैठे। फिर कल्पवासी देवों की कामिनी- देवियाँ बैठी। फिर रागत्यागी विरक्त मनुष्यगण बैठे। फिर अनुक्रम से ज्योतिषी देवी, व्यंतर देवी एवं भवनवासी देवियाँ अपने-अपने कोठों में बैठीं। फिर भवनवासी, व्यंतरवासी, ज्योतिषी देव और असुर अपने-अपने अनुक्रम से प्रकोष्ठों में बैठे। फिर देवों सहित कल्पवासी राजा इन्द्र बैठा । फिर नरवर प्रधान मनुष्यों के स्वामी बैठे। फिर तिर्यंच-परिवार सहित अपने तीक्ष्ण नखों एवं मुखों से शत्रु को नष्ट करने वाले सिंह बैठे। एक कोने में आर्यिकाएँ (स्त्रियाँ) भी बैठीं। घत्ता - नट्टल के मन को हरनेवाले जिस (पार्श्वचरित) ने साक्षर - प्रवर श्रीधरों को भी न केवल सम्यक्त्व प्राप्त कराकर यशस्वी बनाया, अपितु, उन्हें स्वर्ग भी प्राप्त कराया है। उन (पार्श्व) जिनवर की शरण के गुणों का वर्णन कौन कर सकता है? यह बुध श्रीधर भी उनके गुणों का वर्णन करने में असमर्थ है। ।। 144 ।। पुष्पिका इस प्रकार गुणभरित यह मनोज्ञ श्री पार्श्वनाथ चरित श्रीधर बुध के द्वारा रचित है। इसका अनुमोदन नट्टल नाम के भव्य साहू ने किया है। केवलज्ञानरूपी सूर्य की एक अद्वितीय किरण वाले तीर्थकर पार्श्वदेव के समवसरण संबंधी कथन में यह अ सन्धि समाप्त हुई ।। संधि ।। ।। 8 ।। 174 :: पासणाहचरिउ प्रेरक एवं आश्रयदाता नट्टल साहू के लिये आशीर्वाद नय-विनय- विवेक-त्याग-भोग - अनुकम्पा, प्रशमयम (धवल - ) यश, शील तथा सत्कलाओं का जो नाथ है और गति, रति एवं विविध सुमतियाँ इन तीनों के लिये जो अधिवास के समान है, जो सभाओं में बुधजनों का आदरसम्मान करता रहता है, उस (साहू) नट्टल का कितने-कितने सज्जनों ने कीर्तिगान नहीं किया है?

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