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अडमी संधी
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The special chair kept on two lions (Simhasana) of Dharanendra-Deva (the seven hooded God-snake) in the Heaven suddenly starts trembling to know about the great disturbances on Pārśwa in penance. घत्ता — इम घोरुवसग्ग जिणेसरहो विसहंतहो जिय-दुज्जिय-सरहो । वियलियइँ सत्त-सरयणि दिणइँ विरइय जणवय आउलमणइँ । । छ । ।
वत्थु - छन्द - तो वि दुरियउ तोउ असुरेसु ।
जिण उवरि मेल्लइ सघणु मुसल सरिस थिर थोर धारहिँ । अणवरउ अणिवारियउ णिहिल तिरिययण पाणहारहि । । जह-जह जिण-खंधहो उवरि जलु उल्लोलेहिँ जाइ । तह-तह कमठासुरहो मणु रहसें कहिंमि ण माइ । । छ । ।
तहिँ अवसरे धरणिंदहो आसणु जह मणु मणुअहो विसयासत्तहो जह कुकविहे कहबंधु अलक्खणु हवास भोयर सुसायहो जह परिवडियचरणु वड्ढउ जलु जह रणे पइ-विहीणु चउविहु बलु
चलियउ मणिकिरणहिँ तिमिरासणु ।। जह सुरूउ तरुणेयर गत्तहो ।। जह जिणधम्महो मुक्खु विलक्खणु ।। जह पुण्णक्खए णरवइ रायहो ।। जह पवणाहय कयली कंदलु ।। जह अगुणिज्जंतर विज्जाबलु ।।
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स्वर्ग में धरणेन्द्र का सिंहासन कम्पित हो उठता है
घत्ता- इस प्रकार- दुर्जेय-काम को जीतने वाले जिनेश्वर को समस्त जनपद के लिये दिन-रात आकुल-व्याकुल देने वाले असह्य उपसर्गों को सहन करते हुए लगातार सात दिन-रात व्यतीत हो गये ।
वस्तु छन्द - तो भी वह दुरितात्मा (पापी) असुरेश जिनेन्द्र के ऊपर घन- मुसल के समान मोटी-मोटी स्थिर अखण्ड रूप से अनवरत और अनिवारित तथा तिर्यंच प्राणियों की प्राणहारिणी सघन जल-वर्षा करता रहा । जैसे-जैसे वह वर्षाजल बढ़ते-बढ़ते जिनेन्द्र के कंधों के ऊपर लहराता जा रहा था, वैसे ही वैसे उस कमठासुर के मन में भी हर्ष नहीं समा रहा था। उसी अवसर पर मणि-किरणों से तिमिर को नाश करने वाले धरणेन्द्र का आसन चलायमान हो उठा ।। (छ)
धरणेन्द्र का वह आसन किस प्रकार चलायमान हुआ? ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि विषयासक्त मनुष्य का मन चंचल होता है, जिस प्रकार वृद्ध मनुष्य के शरीर का स्वरूप चलायमान हो जाता है, जिस प्रकार कुकवि का लक्षण (व्याकरण छंदादि) विहीन- कथाबंध चलायमन हो जाता है, जिस प्रकार वासा भोजन सुस्वाद से चलायमान हो जाता है, जिस प्रकार पुण्य का क्षय होने पर राजा का राज्य क्षतिगस्त हो जाता है, जिस प्रकार चरणों में पड़ा हुआ जल बढ़ते रहने पर चलायमान हो जाता है अथवा बँधा हुआ जल चरण पड़ते ही चलायमान हो जाता है। जिस प्रकार पवन से आहत कदली-दल चलायमान हो जाता है, जिस प्रकार रण में सेनापति- विहीन चतुर्विध सेना
पासणाहचरिउ :: 159