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8/4 The Demon angrily strikes heavily on his rival
Dharanendra with the devine missile (Vajra-Prahara). वत्थु-छन्द- एत्थु अवसरि असरराओ वि।
दिप्पंतु फणिमणिगणेण णायराउ पेक्खेवि कुद्धउ। विहुणंतु करयलु जुयलु हरि व हरिणदंसणे विरुद्धउ।। जंपंतउ खरयर-वयणु भो-भो दुरसण णाह।
मइँ सहुँ जुत्तु ण कलहु तुह णाइणिविंद सणाह।। छ।। महारिउ दुट्ठ
चिराणउ सुट्ट।। मा रक्खहि बेरि
इमं अवहेरि।। समंदिरि जाहि
फणीसे म थाहि।। ण जंपिउ मज्झु
कुणेहि दुसज्झु।। जईह दुजीह
सुदीह दुरीह।। णिवायमि तासु
जगत्तय तासु ।। महापविदंडु
जलंतउ चंडु।। तुहारए सीसे
फणामणिभीसे।। किमेत्थु मइल्लु
बहुत्तु छइल्लु।। पयंपइ कोवि
समत्थु सुरोवि।। णिवारिवि मज्झ
ण सक्कइ तुज्झु।।
8/4 कमठासुर द्वारा धरणेन्द्र पर ही बज-प्रहार कर दिया गयावस्तु-छंद- इसी अवसर पर वह असुरराज-कमठ भी फणामंडल पर स्थित मणि-समूह के कारण चमकने
वाले नाग-राज को देखकर उसी प्रकार अत्यन्त क्रूद्ध हो उठा, जिस प्रकार हरिण को देखते ही हरि (सिंह) क्रुद्ध हो उठता है। करतल-युगल को पीटता हुआ वह असुरराज चीखते-चिल्लाते हुए कर्कश वचनों से बोला- हे द्विरसन नाथ, नागिनी वृन्द सहित होते हुए तुम्हें मेरे साथ इस प्रकार कलह करना उचित नहीं। ।। छ।।
(वह पुनः बोला) यह (सभी का) महान् शत्रु है, चिर काल का एकदम अनयी (अन्यायी) है, इस बैरी की रक्षा मत करो। इसकी अवगणना करो। हे फणीश, अपने भवन में लौट जाओ। यहां मत रुको। मुझसे रुकने को मत बोलो। तुम ऐसा दुस्साहस भी मत करो। हे द्विजिह, यदि यह चेष्टा दीर्घकालीन है, तो वह बड़ी ही दुरीहा (दुष्ट) रूप है, अतः जगतत्रय को त्रस्त करने वाले उस बैरी का मैं निपात करूँगा ही।
जलता हुआ यह प्रचण्ड महा बजदण्ड है, जो फण-मणि से भी भयंकर है। अतः इसें मैं तुम्हारे ही शिर पर पटक देता हूँ, इसमें मेरा बिगड़ता ही क्या है? (इसके अतिरिक्त भी) मेरे पास अनेक छल-छद्म हैं। यदि किसी देव में सामर्थ्य है, तो आकर मुझसे बोले और रोककर देख तो ले। तेरी तो कोई शक्ति ही नहीं है। पहले गिरीन्द्र के समान
पासणाहचरिउ :: 163