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7/14 Dangerous fearful wild animals also could not deviate Pārśwa from his meditation. वत्थु-छन्द- जा ण बोल्लिउ वाहिणीसेण ।
जिणणाहु असुराहिवेण ता विमुक्कु सावय- सहासइँ । दिढ दाढ तिक्खाणणेहिँ तिविह लोय महाभयपयासइँ ।। गय-गंडोरय-गयणयर-महिस- वियय-सदूल । वाणर-विरिय-वराह- हरि-सिरलोलिर लंगूर । । छ । ।
केवि कूरु घुरहुर हिँ केवि करहि ओरालि
केवि दाढ दरिसंति केवि भूरि किलिकिलहिँ केवि हिय पडिकूल केवि करु पसारंति केवि गयणयले कमहिँ केवि अरुण णयणेहिँ
केवि अणवरउ तासंति
वि धुहिँ सविसाण
दूरस्थ फुरहुरहिँ । ।
ण भुवंति पउरालि । | अइ विरसु विरसंति । । उल्ललेवि वलि मिलहिँ । । महि हणिय लंगूल ।।
हिंसण ण पारंति । ।
अणवरउ परिभमहिँ । ।
भंगुर वयणेहिं । ।
केवि अकियत्थ तूसंति । । कंपविय परपाण ।।
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विकराल श्वापद-गण भी पार्श्व प्रभु को उनकी तपस्या से विचलित न कर सके
वस्तु छन्द — वह रौद्र समुद्र भी जब अपनी वाहिनी - सेना द्वारा जिननाथ को न डुबा सका, तब असुराधिप ने उन पार्श्व पर सहस्रों श्वापद (हिंसक पशु-पक्षी) छोड़े, जो सुदृढ़ दाढ़, तीक्ष्ण मुख वाले तथा जो तीनों लोकों के लिये महान् भयाकुल करने वाले थे। ऐसे श्वापदों में गज, गैंडा, उरग (सर्प) गगनचर (पक्षी) जंगली भैंसे, विकट शार्दूल, बानर, विरिय (बर्र) शूकर, सिंह आदि थे, जिनके सिर पर कम्पायमान पूँछ तनी हुई थी
कोई-कोई क्रूर श्वापद घुरघुरा रहे थे, तो कोई-कोई श्वापद दूर से ही फुरफुरा रहे थे । कोई-कोई ( श्वापद) ओराली (लम्बी और मधुर आवाज ) कर रहे थे और अपना प्रवर संग नहीं छोड़ रहे थे। कोई-कोई दाँत दिखा रहे ( चिढ़ा रहे थे, और बेसुरी चीखें मार रहे थे । कोई-कोई बेहद किलकिला रहे थे, तो कोई-कोई उछल-उछल कर मिल रहे थे ।
कोई-कोई अपनी पूँछ को भूमि पर पटक कर शत्रु को मारते थे, तो कोई कोई सूँड के समान अपना हाथ फैला रहे थे किन्तु मार डालने में पार नहीं पा रहे थे, कोई गगनतल में घूम रहे थे और अनवरत रूप में चक्कर काट रहे
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कोई लाल-लाल नेत्रों से मुँह को टेढ़ा-मेढा कर (चिढा) रहे थे और कोई-कोई अनवरत रूप से डाँट ( खिसिया) रहे थे और कोई-कोई व्यर्थ में ही सन्तुष्ट हो रहे थे । कोई-कोई दूसरों के प्राणों को कंपा देने वाले अपने सींगों
पासणाहचरिउ :: 151