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घत्ता- इय वसंतु जा आयउ जण विक्खायउ ता रविकित्ति णरेसरु।
गउ समंति मंतणहरु बुहयण मणहरु णिय कुल-कमल-दिणेसरु।। 99 ।।
6/5 King Ravikīrti decides to marry his daughter Prabhāwati with Prince pārswa. An astrologer is called upon to find out auspicious day for the purpose. रविकित्ति भणइ तहि महु तणूअ
णामेण पहावइ अइसुरू। दिज्जइ एह तिहुवण-सिरिवरासु सिरि पासकुमारहो हयवरासु।। उज्झिवि वियप्प संकप्पभाउ
परियाणेवि रविकित्तिहि सहाउ। मंतिहिँ वज्जरिउ वियक्खणेहिँ
परिहच्छिय बहुविह लक्खणेहिँ।। जं अम्हहो मणे परिवसइ देव
तं तुम्हेंहि जंपिउ मणुअसेव। को कणयरयण संजाउ राय
मण्णइ ण वइरि वारिहर वाय।। तं णिसुणिवि हरिसिउ भाणुकित्ति आवज्जिय समरसहास कित्ति। एत्थंतरे हक्कारिवि सुबुद्धि
जोइसिय सिरोमणि विमलबुद्धि ।। वइसारिवि पवरासणि पउत्तु
सो सहरिसेण गुणरयण-जुत्तु। कहि सुअ-विवाह वासरु विसिद्दु जह जोइस-सुअ णाणेण दिनु।।
घत्ता- जब वह वसन्त मास आया, तब लोगों में विख्यात, बुधजनों के मन का हरण करने वाला और अपने कुल
रूपी कमलों के लिये दिवाकर के समान वह रविकीर्ति नरेश्वर अपने मंत्रियों के साथ अपने मन्त्रणा गृह में गया। (99)
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राजा रविकीर्ति अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह कुमार पार्श्व के साथ करने का ___ निश्चय करता है। मुहूर्त-शोधन के लिये वह ज्योतिषी को बुलवाता है(मन्त्रणा-गृह में मन्त्रियों के सम्मुख) राजा रविकीर्ति ने कहा—मेरी प्रभावती नामकी अत्यन्त सुन्दर पुत्री है। वह त्रिभुवन रूपी लक्ष्मी के वर के समान तथा शत्रुजनों को निराश करने वाले श्री पार्श्वकुमार को दी जाय, ऐसी मेरी इच्छा है।
राजा रविकीर्ति के मनोगत भावों को जानकर बहुविध लक्षण-शास्त्रों के ज्ञाता एवं विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न मन्त्रियों ने अपने संकल्प-विकल्प के भावों को छोड़कर उससे (स्पष्ट) कहा-नरेन्द्रों द्वारा सेवित हे देव, जो बात हमारे मन में थी, उसे तो आपने स्वयं ही कह दिया है। मेघ रूपी शत्रु के लिये वायु के समान हे राजन्, स्वर्ण एवं रत्न के संयोग को कौन नहीं मानता ? सहस्रों युद्धों में कीर्ति को अर्जित करने वाला राजा भानुकीर्ति (रविकीर्ति), उन मन्त्रियों के कथन सुनकर अत्यन्त हर्षित हुआ। ___ इसी बीच में उस राजा रविकीर्ति ने सुबुद्ध ज्योतिषियों में शिरोमणि विमलबुद्धि नामक ज्योतिषी को अपने यहाँ बुलवाकर एवं उच्च स्थान पर बैठाकर हर्षित होकर उससे कहा—ज्योतिष-शास्त्र के ज्ञान से आपने जैसा देखा हो, उसे गुणरत्नों से विभूषित हमारी पुत्री के विवाह के योग्य विशिष्ट शुभ-दिवस बतलाइये।
पासणाहचरिउ :: 117