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परिहरिउ रयणजडियउ किरीडु मुक्कइ मणि णिम्मल कुंडलाइँ ण समिच्छिय कडिरसणा रसंति अवगण्णिउ णिम्मलु बाहुरक्खु अवमण्णिय णव-सेलिंध-माल पच्चालिय पवरंगुत्थलीउ
णावइ मणसिय बाण-णियर णीडु।। णावइ दुहयर खल-मंडला.।। णावइ चउगइ णाइणि डसंति।। णावइ णिरु णिव्वाणहो विवक्खु ।। णावइ भवदुह संतइ वमाल।। णावइ मणरुह रायत्थलीउ।।
घत्ता- छुडु कोमल सुइवसणइँ विरइय वसणइँ चत्तइ तणु आवरण।
ता आलिंगिउ तवसिरियए वियलिय हिरियए दरिसंतिए तियरयणइँ।। 107 ||
6/13 Extra-ordinary five wonders appear at the time of taking Ahāra (Pious food) by
Parswa-Muni at the city of Gajapura.
एत्यंतरे इंदें पणय जिणेंदें सिररुहइँ। मणिभायणे लेविणु विणउ करेविणु अलिणिहइँ।। खित्तइँ अइपविमले खीरण्णवजले तहि समए।
को ही उतार फेंका हो। माणिक्य जटित कंकणों को दूर फेंक दिया, मानों रति-नारी के बन्धनों को ही तोड़ डाला हो। रत्न जटित किरीट को छोड़ दिया, मानों कामदेव के बाण-समूह का घर ही त्याग दिया हो। उन्होंने मणि निर्मित सुन्दर कुण्डलों को उतार दिया, मानों दुखकारी खल-मण्डल को ही हटा दिया हो। कटिभाग में बजती हुई रसना (करधनी) की भी उन्हें चाहना न रही, वह ऐसी प्रतीत हो रही थी मानों उन्हें चतुर्गति रूप नागनी ही डॅस रही हो। बाहुरक्षक निर्मल भुजबन्ध भी तिरस्कृत कर दिये, मानों वे निर्वाण प्राप्ति के बाधक ही हों, नव-पुष्पों की माला को भी तिरस्कृत कर दिया, मानों उनके लिये वह भवदुखों की परम्परा ही हो। अंगुलियों से प्रवर अंगूठियों को भी उतार फेंका, मानों उनके लिये वे कामराज की रंगस्थली ही हों।
घत्ता- सुकोमल सुन्दर आवरण वसनों (वस्त्रों) को व्यसनकारी (दुखकारक) समझकर तत्काल उनका भी परित्याग
कर दिया। तभी तीन रत्नों को दिखलाती हुई तपोलक्ष्मी ने लज्जा का परित्याग कर पार्श्व प्रभु का आलिंगन किया। अर्थात् उन्होंने दैगम्बरी-दीक्षा धारण कर ली। (107)
6/13 गजपुर नगर में पार्टी के आहार के समय पंचाश्चर्य प्रकट हुए तत्पश्चात् जिनेन्द्र पार्श्व को नमस्कार कर उनके भ्रमर सदृश केशों को मणिभाजन में रखकर वह इन्द्र विनय पूर्वक चला और उसी समय उसने क्षीरसागर के पवित्र जल में उनका क्षेपण कर दिया।
पासणाहचरिउ :: 125