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घत्ता- अविरल ससलिल वरवोमयर पच्छाइय दिणयर सोमयर।
खयरामर णरमण्ण खोहयर ज्झाणट्ठिय थिर मुणि ण मोहयर।। 122 ।।
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On being failure to disturb Pārswa-Muni, through heavy rains, the demon
King Meghamālin obstructs him by blowing strong winds, वत्थ-छन्द- केवि ससहर हंस संकास।
केवि रत्तणावइ पवर जंगमोरु गेरुवहं। . --- केवि सिहिकंठ समाण पंचवण्ण ठियणहे।। णिविड णावइ सुरह विमाण..... ।
णीसेसुवि जगु अंधारंतउ एरिसु मेहागमु णियणयणहिँ तेण ण कंपिउ पास जिणेसरु महिहरु जह तह पेक्खेवि थिरयरु तहि अवसरि चिंतिउ असुरेसे पत्तउ तरुहराइ पाडतउ
अहिणव पाउससिरि धारंतउ।। णहे पेक्खेविणु मउलिय वयणहिँ।। एक्क मुएविणु जाय परमसरु।। ओलंबिय दुद्दम दीहरयरु।। खय-परसणु कंपाविउ गरेसँ।। फलसेलिंध पत्तइँ झाडंतउ।।
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घत्ता- उन सघन मेघों ने सूर्य-चन्द्र को भी आच्छादित कर दिया और सारे आकाश को अविरल वर्षा-जल से व्याप्त
कर दिया। उसने खेचरों, अमरों एवं मनुष्यों को क्षुब्ध कर दिया, किन्तु ध्यान में स्थित उन पार्श्व मुनीन्द्र के मन को वह मोहित न कर सका। (122)
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असुराधिपति मेघमाली द्वारा पार्व मुनीन्द्र पर किये गये दुर्धर मेघोपसर्ग के असफल हो जाने पर प्रचण्ड वायु द्वारा पुनः उपसर्गवस्तु छन्द- कितने ही मेघ चन्द्र एवं हंस के समान थे, कितने ही लाल वर्ण के थे, जो ऐसे प्रतीत हो रहे थे,
मानों चलते-फिरते प्रवर गेरु के रंग को ही धारण किये हुए हों। कितने ही मेघ मयूर-कण्ठ के समान वर्ण वाले थे। इस प्रकार समस्त आकाश में पंचवर्ण के सघन मेघ व्याप्त थे। वे ऐसे प्रतीत हो रहे
थे, मानों पंचवर्ण वाले स्वर्ग के विमान ही हों।... समस्त जगत को अन्धकार से आच्छादित करते हुए तथा अभिनव पावस-ऋतु को सिर पर ओढे हुए, उन मेघों का आगमन अपने नेत्रों के द्वारा स्मित मुख मुद्रा से आकाश में देखकर भी वे पार्श्व मुनीन्द्र वचनों से मौन रहे। वे (पार्श्व जिनेश्वर) उनसे (जरा भी) कम्पित न हुए। उन्होंने एक मात्र परमस्वर (का वाचनिक उच्चारण) भी छोड़ दिया और मौन हो गये।
लटकाये हुए दुर्दम दीर्घतर हाथों वाले उन पार्श्व मुनीन्द्र को पर्वत के समान स्थिरतर देखकर, अपने कर्कशस्पर्शमात्र से ही राजाओं को कँपा देने वाले उस असुरेश ने उसी समय वायु का चिन्तन-स्मरण किया और वृक्षावलियों को अखाडती हुई, फल, पुष्प एवं पत्तों को झड़ाती हुई, ऐसी तीक्ष्ण वायु तत्काल ही वहाँ आ पहुँची, जो पृथिवी
144 :: पासणाहचरिउ