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एत्थु अंतरे विसाल बुद्धिणा पवोहिओ। सव्व सत्थ चंचुरेण मंतिणा णराहिओ।। भंगुरं पयंपिऊण पुत्त-मित्त-मंदिरं।
सत्ति-पत्ति-संदणंगणा रसंत चंदिरं।। घत्ता— वज्जिवि सोउ असारु दुण्णयगारु सिरिमूसिय वच्छत्थलु।
दुम्मण परियणसहियउ जगगुरु-रहियउ गउ रविकित्ति कुसत्थलु ।। 109 ।।
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Heart rendering crying of Princess Prabhāwati, due to the separation from her dear Pārswa.
तहिँ समए कुमारहो सुणेवि वत्त आमेल्लिय धाह पहावईए थोरंसु णिहय थोव्वड थणाए लोयण-कज्जल मइलिय मुहाए णिवडंतिए धरणीयले लसंति पावेवि सपवणु सलिलाहिसेउ णित्तुलउ मुणमि णियमणि विहाय
परिपालिय संजम तणिय जत्त।। उब्मेवि भुअ-जुअलु पहावईए।। पियविरह वेयणाउलु मणाए।। पयणिय णिय हियय महादहाए।। आबद्ध णिविड वरदंत पंति।। उट्ठिय पुणु विमण भणंति एउ।। सुहियण संतइ मत्थय णिहाय।।
इसी बीच, राजा रविकीर्ति की यह दशा देखकर सर्वशास्त्रों में निष्णात, विशाल बुद्धि के धारक एक मन्त्री ने उसे प्रबोधित किया और समझाते हुए कहा
हे राजन्, पुत्र, मित्र, मन्दिर (भवन आदि), सत्ति (घोडा), पत्ति (पदाति-पैदल) सेना, स्यन्दन (रथ), मनोरंजन करने वाली रसिक अंगनाएँ आदि ये सभी क्षणिक हैं
घत्ता— तथा सभी दुर्नयकारक हैं। अतः उन्हें निस्सार समझकर शोक करना छोड़ दीजिये। यह सुनकर हार-मण्डित
वक्षस्थल वाला वह रविकीर्ति शोकाकुल परिजनों सहित किन्तु जगत् गुरु (पाच) रहित होकर अपने कुशस्थल नगर में लौट आया। (109) (त्रोटक छन्द)
6/15 प्रिय-विरह में राजकुमारी प्रभावती का करुण-क्रन्दनउसी समय पार्श्व कुमार के संयम-पालन सम्बन्धी यात्रा का वृत्तान्त सुनकर (राजकुमारी) प्रभावती ने अपने स्वर्णाभा वाले भुजयुगल ऊपर की ओर उठाकर जोर से धाड़ मारी। अश्रुधारा के प्रवाह से उसके उन्नत कठोर स्तन भीग गए। प्रिय-विरह-जनित वेदना से उनका मन अत्यन्त व्याकुल हो उठा। नेत्रों में लगे काजल के बह जाने से उसका मुख श्यामवर्ण का हो गया। वह अपने हृदय में महान् दुख का अनुभव कर रही थी। मूर्च्छित होकर वह धरती पर गिर पड़ी उस समय उसकी अत्यन्त घनी आबद्ध दन्तपंक्ति सुशोभित हो रही थी। जब उसके मुख पर शीतल जल का सिंचन एवं हवा की गई, तब वह उठी और अनमनी होकर बोलने लगी हे पार्श्व, मैं तो आपको अपने मन में अनुपम मानव मानती रही हूँ और अपनी चिन्ताओं को छोड़कार मैं सुधीजनों के साथ निरन्तर ही अपना मत्था टेकती रही हूँ।
128 :: पासणाहचरिउ