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चूरइ लूरइ रह-धयवडाइँ दावइ णच्चावइ रिउधडाइँ कोक्कइ रोक्कइ कड्ढेवि किवाणु हक्कइ थक्कइ रिउ-पुरउ झत्ति वंचइ संचइ सरचामराइँ आसंधइ लंघइ गयवराइँ उद्दालइ लालइ पहरणाइँ वग्गइ भग्गइ संगरु रउद्दु पेल्लइ मेल्लइ ण किवाणलट्ठि अवहेरइ पेरइ भीरु सूर
फाडइ पाडइ गयमुहवडाइँ।। धावइ पावइ उमडभडाइँ।। पच्चारइ मारइ मुएवि वाणु।। णिहणइँ विहुणइँ तोलइँ ससत्ति।। पोसइ तोसइ खयरामराई।। दारइँ संहारइँ हयवराई।। धीरहँ वीरहँ दप्पहरणाइँ।। डोहइ खोहइ णरवर समुद्दु।। गज्जइ तज्जइ दरिसइ णरहि।। पासइ संतासइ वाणकूर।।
घत्ता-- जुज्झंते सुहड भयंकरेण एकल्लें रविकित्ति परिंदें।
आयासिउ परबलु भुअबलेण असुरणियरु णावइ अमरिंदें।। 73||
4/15 Fierce fighting of King Ravikirti with five brave and indomitable warriors of Yavanrāja. दुवइ- घोसेवि साहुक्कारु गिव्वाणहिँ कुसुमंजलि पमेल्लिया।
रविकित्तिहिँ भडेहिँ जयतूर पविहय रयरसोल्लिया।। छ।।
वह राजा रविकीर्ति रथों को चूर-चूर कर धूलिसात करने लगा, ध्वजा-पताकाओं को चीरने लगा और हाथियों के पलानों तथा उनके मुख-वस्त्रों को फाड़कर फेंकने लगा। शत्रुओं के धड़ों को दबाने और नचाने लगा और शत्रु पक्ष के उद्भट भटों को जहाँ भी पाता था, उन्हें हाँककर दौड़ा देता था उन्हें कृपाण निकालकर ललकारता और रोक लेता था, शत्रुओं को पुचकार कर अपने पास बुलाता, अपनी शक्ति को तौलता और बाण से उसे मार डालता
हाँका हआ और थका हुआ शत्रुभट तत्काल उसके सम्मुख आता और उसे पकडकर वह हिला-हिलाकर जान से मार डालता था। शत्रुओं से बाण तथा चामरों को छीनकर उनका संचय करता था और खचरों को पोषता तथा अमरों को सन्तुष्ट करता था। गजवरों को लक्ष्य कर उन्हें लाँघता था, उत्तम घोड़ों को विदीर्ण कर उनका संहार करता था, धीर-वीरों के दर्प का हरण करने वाले प्रहरणास्त्रों को चमका-चमकाकर उछालता हुआ चलता था। वह दीले बोल बोलता था तथा रौद्ररूप धारण कर युद्ध कर रहा था। वह शत्रुभटों रूपी समुद्र को क्षुब्ध कर उसका मन्थन करता था, अपनी कृपाण को वह शत्रुभटों (के वक्षस्थलों) में पेल डालता था, वह उसे छोड़ता न था। वह गर्जन-तर्जन करता हुआ शत्रु नरों की हड्डियाँ दिखलाता रहता था। वह भीरुजनों की अवहेलना करता था तथा क्रूरता पूर्वक बाणों द्वारा उन्हें सन्त्रस्त करता था। इसके विपरीत वह शूर-वीरों को प्रेरक दृष्टि से देखता था।
घत्ता- सुभटों के लिये भयंकर उस राजा रविकीर्ति ने अकेले ही रण में जूझते हुए अपने भुजबल से शत्रुओं
को उसी प्रकार नियन्त्रित कर लिया, जिस प्रकार असुर-समूह को अमरेन्द्र नियन्त्रित कर देता है। (73)
4/15 राजा रविकीर्ति की यवनराज के पाँच दुर्दान्त योद्धाओं से भिड़न्तद्विपदी—(राजा रविकीर्ति की अपराजेय वीरता को देखकर-) गीर्वाणों (देवों) ने साधु-साधु का जय-जयकार कर
पुष्प-वर्षा की। राजा रविकीर्ति के भटों ने भी हर्ष-राग के रस से उन्मत्त होकर विजय के नगाड़े पीटे।
पासणाहचरिउ :: 83