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खंभइ णं जयसिरि-मंदिरासु बालहिँ धरि कड़िढउ कोवि केम कासु वि णिरसिय णक्खत्तमाल कासु वि संचूरिउ पुक्खरग्गु कासु वि सयदल-कय-कणयसारि कासु वि पाडिय गुडमुहवडाइँ
फणिसुर-णर-णयणाणंदिरासु ।। भुव-जुअ बलेण धर साणु जेम।। णं वइरि-कित्ति-बल्ली विसाल।। सीयर मुअंतु गयणयले लग्गु।। णं बिणिवारिय आवंति मारि।। कासु वि णिद्धाडिय धयवडाइँ।।
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पत्ता- रविकित्ति परिंदहो रिउगयइँ करयलकय गयाए कट्टतहो।
गय-गयसयदल होएवि जिणहो कम्मपयडि णं तउ विरयंतहो।। 82||
5/3 Yavanrāja is let down but stands up soon and gets Ravikīrti trapped with his elephants again.
दइ- परिगलियाउहो वि रिउ दज्जउ जाणेवि जउणसामिणा।
पुणु वि करिंदविंद बेढाविउ मत्तमयंगगामिणा ।। छ।। ता णिएवि भाणुकित्ति
लद्धसेय भाणुकित्ति।। सक्कवम्मराय पुत्तु
चारु वीरलच्छि जुत्तु।।
रूपी मन्दिर के स्तम्भ ही हों।
किसी-किसी सुभट के बालों को पकड़कर उसने अपनी ओर खींच लिया, किस प्रकार? ठीक, उसी प्रकार जिस प्रकार कि घर के कुत्ते को हाथ से पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया जाता है। किसी-किसी हाथी की नक्षत्र-माला को उसने नष्ट कर दिया, मानों शत्रु की विस्तृत कीर्ति रूपी बल्ली को ही नष्ट कर दिया हो। किसी-किसी मत्तगज की मदजल के कणों को छोड़ने वाली गगनचुम्बी सूंड के अग्र भाग को ही उसने चूर-चूर कर डाला। किसी-किसी हाथी की स्वर्णनिर्मित सारी झूलों एवं हौदों के सैकड़ों टुकड़े कर डाले, मानों आती हुई महामारी के रोग को ही रोक दिया गया, हो। किसी-किसी हाथी के गुडरूप (लगे हुए सुन्दर) मुखपटों को फाड़ डाला, तो किसी-किसी के ध्वजापटों को ही नष्ट कर डाला गया। घत्ता– इस प्रकार राजा रविकीर्ति ने अपने हाथ की गदा से शत्रु-पक्ष के मत्तगजों को कूटते-कूटते सैकड़ों टुकड़ों
में, उसी प्रकार नष्ट कर डाला, जिस प्रकार जिनेन्द्र के द्वारा कर्म-प्रकृतियों को खण्ड-खण्ड कर नष्ट कर दिया जाता है। (82)
5/3 यवनराज ने मुँहकी खाकर भी रविकीर्ति को गज-समूह से पुनः धिरवा लियाद्विपदी—मदोन्मत्त गजेन्द्र पर आरूढ़ उस यवनराज ने जब यह.जाना कि शत्रु राजा रविकीर्ति आयुध रहित हो जाने
पर भी दुर्जेय है। अतः उसने उसे अपने करीन्द्र-समूह द्वारा चारों ओर से पुनः घिरवा दिया। सूर्य की श्वेत किरणों के समान कान्ति वाले तथा सुन्दर वीर-लक्ष्मी से युक्त राजा शक्रवर्मा के पुत्र, राजा
96 :: पासणाहचरिउ