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5/4 On request from Prime counsellers Prince Pārśwa proceeds again to the-battle-field with his big army (Akshauhini-senā which normally consists of 109350 experienced footsoldiers, 65610 trained horses, 21870 chariots and 21870 trained elephants).
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दुवइ एत्यंतरे महंत - मइ मंतिहिँ पणविवि पाय-पंकयं ।
विण्णविओ जिणेंदु हयसेणहो णंदणु विगय-पंकयं । । छ । ।
भो वम्मदेवि-णंदण णिराय णीसेस रिंद किरीडरयण सयमह-सय-संथुव गुण-विसाल जय-लच्छि - विहूसिय बाहुडाल हय दुद्धर मार- रिंद दप्प जइ होइ ण सारहि रहि महंतु दहणोवि दहणुण दहणसमत्थु
विमाइ सिरि धरेइ रिउ-गयवरेहिँ रविकित्तिराउ जह-जह चूरइ रिउ कुंजराइँ तह-तह रविकित्तिणरिंदु तेण
छव्वग्ग-बइरि-विसहर- विराय ।। लुप्पल संकास यण । । खयरोरय णर- सुर- सामि-साल । | णियवंस - सरोरुह-वणं मराल ।। सूरोवि सूरु किं करइ बप्प ।। ता क्रिं गच्छ भणु रवि णहंतु ।। जइ पवणु ण पज्जालइ महत्थु ।। तो वि एकल्लउ भाणु किं करेइ ।। वेढि णं परिवेसेहिँ राउ ।।
बल कंपाविय दिक्कुंजराइँ ।। वेढि अवरोहिमि तक्खणेण । ।
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महामन्त्रियों का निवेदन सुनकर राजकुमार पार्व अक्षौहिणी सेना (जिसमें कि लगभग 109350 प्रशिक्षित अनुभवी पदाति- सेना, 65610 प्रशिक्षित अश्व-सेना, 21870 प्रशिक्षित रथ- सेना और उतनी ही प्रशिक्षित गज-सेना रहती है ) के साथ रण-प्रयाण करते हैं
द्विपदी - इसी बीच महामति मन्त्रियों ने हयसेन के पुत्र - जिन - पार्श्व के विंगत मल चरण-कमलों में प्रणाम कर निवेदन किया
वामादेवी के नन्दन, हे वीतराग, अन्तरंग के शत्रु षड्वर्ग (काम, क्रोध, मद, हर्ष, माया एवं लोभ) रूपी विषधरों के लिये गरुड़ के समान हे देव, सम्पूर्ण राजाओं के मुकुटों के हे किरीट रत्न, नीलकमल के समान नेत्र वाले हे देव, सैकड़ों शतमखों-इन्द्रों द्वारा संस्तुत, गुण- विशाल, विद्याधर, नाग, नर एवं सुरों के हे स्वामिन्, जयलक्ष्मी से विभूषित विशाल भुजबल, अपने वंश रूपी कमल वन के हे मराल हंस, आप दुर्धर काम रूपी नरेन्द्र के दर्प के नाशक हैं।
कोई कितना ही शूरवीर क्यों न हो, फिर भी बाप रे बाप, वह तब तक अकेला कर ही क्या सकता है, जब तक कि उसके रथ पर कुशल एवं अनुभवी सारथी ही न हो? सुयोग्य सारथी के बिना आप ही बतलाइये कि क्या सूर्य और उसका रथ आकाश में चल सकता है? जलाने में समर्थ अग्नि भी तब तक जला डालने में सक्षम नहीं होती, जब तक कि प्रचण्ड वायु उसे प्रज्वलित न कर दे। भले ही रविकीर्ति ने उन्नत मान-अहंकार अपने सिर पर धारण किया, तो भी आप ही कहिये कि वह (रविकीर्ति) अकेले कर ही क्या सकता है ?
वह राजा रविकीर्ति शत्रु-गजवरों से इस प्रकार घिरा हुआ है, मानों चन्द्रमा स्वयं अपने ही मण्डल से घिरा हुआ हो। वह रविकीर्ति दिक्कुंजरों के बल को भी कँपा देने वाले शत्रु-कुंजरों की जैसे-जैसे चटनी बना डालता है, वैसे ही वैसे वह उस यवनराज के दूसरे कुंजरों द्वारा तत्काल ही बेढ़ दिया जाता है।
98 :: पासणाहचरिउ