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ष्ट्ठी संधी
6/1 Prince Pārswa very kindly forgave all the anemy-soldiers. घत्ता- छुडु बद्धउ जउणाहिउ अजउ महाहिउ ता गयणंगणे सुरवरेहैं।
हणेवि महारउ तूरइँ तिहुअण पूरइँ महिहिँ पसंसिउ णरवरेहिँ।। छ।। कह दीसइ बद्धउ जउणु राउ
जह पंजरे छुद्धउ हरिणराउ।। जह वाइएण सुयसयसमूह
जह वारिणि बंधणे दुरयजूहु जह आयस वलयहिं दंतिदंतु
जह णाणाकम्महिं जीउ संतु।। तं णिएवि तुद रविकित्ति राउ
रोमंच कंचुआ पिहिय काउ।। तहिँ अवसरि जउणहो सुहडपत्त भयभीय विसंतुल खिण्ण गत्त।। जंपंतु दीणु पासहो णवेवि
सिरिसिहरोवरि करयल ठवेवि।। अविणउ जं विरइउ देव-देव
अम्हहिँ अण्णाणिहिँ तिजय-सेव।। तुहु सव्वु खमहिँ तं सामि साल अम्हहुँ मियंक-दल सरिस-भाल।। देहंतरि णिवसइ जीउ जाम
तुहं चरणाराहण करहु ताम।। आएसु देहि विरइवि पसाउ
परिहरिवि देव दूसह कसाउ।। घत्ता— ताह वयणु आयण्णेवि णियमणे मण्णेवि सयल वि में भीसेविणु। संगरे णरवरविंदहो हयरिउविंदहो दिण्ण केर विहसेविणु।। 96 ।।
6/1 कुमार पार्श्व ने सभी शत्रु-भटों को क्षमादान प्रदान किया
घत्ता-- कुमार पार्श्व ने जब उस दुर्जय, महाशत्रु यवनराज को देखते ही देखते बाँध लिया, तब गगनांगन में देवों ने तरादि
वाद्य बजा-बजाकर ऐसा जयघोष किया कि उसने तीनों लोकों को पूर दिया। नरवरों ने उसकी बड़ी प्रशंसा की।
और, बाँधा हुआ वह क्षुब्ध यवनराज कैसा दिखाई दे रहा था? ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार कि पिंजड़े में बन्द सिंहराज दिखाई देता है अथवा जिस प्रकार पिंजड़े में बद्ध शुक-समूह, खूटे से बँधा हुआ गज-यूथ, लोहे की बेड़ी में जकड़ा हुआ हाथी और नाना कर्मों से बँधा हुआ जीव दिखाई देता है। उसे देखकर रोमांचित कर देने वाले कवच से आच्छादित शरीर वाला वह राजा रविकीर्ति बड़ा संतुष्ट हुआ।।
उसी समय यवनराज के अत्यन्त भयभीत, अस्त-व्यस्त एवं खिन्न गात्र वाले सुभट जन आये और अपने माथे पर दोनों हाथ रखकर दीनता प कुमार पार्श्व को प्रणाम कर बोले-त्रिजग द्वारा सेवित हे देवाधिदेव, हम अज्ञानियों द्वारा यदि कोई अविनय की गई हो, तो द्वितीया के चन्द्रमा के समान मस्तक वाले हे देव, विशाल हृदय वाले हे स्वामिन, उन सभी के लिये आप हमें क्षमा कर दीजिये। जब तक इस शरीर में आत्मा का निवास रहेगा, तब तक हम सभी आपके चरणों की आराधना करते रहेंगे। हे देव, दुस्सह कषाय का परित्याग करने की कृपा कीजिये और हमारे योग्य कार्य हेतु अपनी आज्ञा प्रदान कीजिये।
घत्ता- उन शत्रु-सुभटों के दीन-वचन सुनकर तथा उन्हें अपने मन में अपने जैसा मानकर उन्होंने कहा-"तुम लोग
डरो मत" और समरभूमि में रिपु-समूह को नष्ट करने वाले सभी नर वृन्दों के लिये कुमार पार्श्व ने विहँसकर आशीर्वाद दिया। (96)
पासणाहचरिउ :: 113