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5/14 Being deeply wounded by the poisonous arrow of Prince Parśwa Yavanrāja faints.
दुवइ दुक्कालु वि विहाइ हय-गय-रह सुहडइ खउ करंतओ । णं ससरीरु कालु अवयरियउ दीसइ संचरंतओ । । छ । ।
वसुणंदालंकिय वामपाणि तं पेक्खिवि हयसेणहो सुएण करे करेवि सरासणु संधिवि वाण कप्परिउ तासु करवालु केम णाणा मणिमउ सण्णाहु जेम मेल्लइ ण स विक्कमु तो वि धीरु एत्यंतरे अवरु किवाणु लेवि मच्छर-भरियउ विहियाहिमाणु धाविउ सरोसु लहु पयाहि तेथु असि वाहइ पइसिवि झत्ति जाम
धावइ परबलहो करंतु हाणि ।। परियाणिय णिम्मलयर सुएण ।। अणवरउ मुएप्पिणु अप्पमाण ।। चउगइ संसारु जिणेण तेम ।। पिल्लूरिउ वच्छत्थलु वि तेम ।। परबल धरणीयल दलण सीरु ।। णीसेसु वि पर-बलु णिद्दलेवि । । अगणंतउ सरसंघाण ठाणु ।। सरसंधइ पासकुमारु जेत्थु ।। पासेण विवाणहिँ लिहउ ताम ।।
घत्ता - मुच्छंगउ जउणु णराहिवइ पासकुमारहो बाणहिँ सल्लिउ ।
तणु वण णिग्गय सोणिय जलहि सयलु महीयल मंडलु रेल्लिउ || 94 | |
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कुमार पार्श्व के विषैले बाण से घायल वह यवनराज मूर्च्छित हो जाता हैद्विपदी — घोड़े, हाथी, रथ एवं शत्रु- सुभटों का क्षय करता हुआ वह दुष्ट यवनराज, यमराज के समान सुशोभित हो रहा था। वह ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों काल ने ही सशरीरी बनकर अवतार ले लिया हो, और वही वहाँ संचरण करता हुआ दिखाई दे रहा हो—
उसका बायां हाथ वसुनन्दा (तलवार) से अलंकृत था, जिससे वह पर-बल की हानि करता हुआ झपट्टा मार रहा था। यह देखकर हयसेन के निर्मलतर श्रुत के ज्ञाता सुपुत्र पार्श्व ने अपने हाथ में धनुष बाण लेकर उस यवन पर लगातार अगणित बाण छोड़े और उस यवनराज की तलवार पार्श्व ने किस प्रकार तोड़ डाली? उसी प्रकार, जिस प्रकार कि जिनेन्द्र चतुर्गति स्वरूप संसार को नष्ट कर डालते हैं। उन्होंने नाना प्रकार के मणियों से जटित कवच को भेदकर उसके वक्षस्थल को भी बेध डाला ।
इतनी हानि हो जाने पर भी, शत्रुपक्ष को रणभूमि में दलन करने के लिये हलधर के समान उस धीर-वीर यवनराज ने अपना पुरुषार्थ - पराक्रम नहीं छोड़ा।
इसी बीच वह यवन दूसरा कृपाण लेकर अधिकांश शत्रुसैन्य का निर्दलन करता हुआ, मत्सर से भरा हुआ वह अहंकारी (यवन), पार्श्व के शर-सन्धान की भी अवहेलना करता हुआ, रोष पूर्वक तत्काल ही उस ओर दौड़ पड़ा, जहाँ से कुमार पार्श्व शर-सन्धान कर रहे थे। उनके घेरे में घुसकर वह वहीं पर तलवार भाँजने लगा, किन्तु पार्श्व के बाण द्वारा उसकी वह तलवार भी चाँट ली गई और स्वयं वह यवन भी घायल होकर पटकी खा गया।
घत्ता - इस प्रकार कुमार पार्श्व के बाण द्वारा विद्ध होकर वह नराधिप यवन मूर्च्छा को प्राप्त हो गया। उसके शरीर के घावों से इतना रक्त रूपी जल प्रवाहित हुआ कि उससे समस्त महि-मण्डल में जैसे बाढ़ ही आ गई। (94)
110 :: पासणाहचरिउ