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तं सुणिवि वयणु उद्धसिय रोमु पिल्लूरिय णिय वइरियण- पोमु
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घत्ता - रविकित्ति णरिंदें करि करेवि गुण-मंडिउ गंडीउ पयंडेहिँ । संधिवि दुद्धर सरधोरणिए णवहँ वि सिरि पाडिय दोहंडेहिँ ।। 75 ।।
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Srinivasa, the General of Yavanrāja encircles with the volley of arrows to King Ravikirti.
दुवइ - णव णव णिय तणूअ परिणिवडणे विउलु वि बलु पहिल्लओ । णिरु सिरारणालु विहुणंतर जउणु वि हियए सल्लिओ ।। छ । ।
एत्यंतरे वाहिवि रहु सराहु णिसियग्ग किवाणु-लया सणाहु सो पडिउ खुरप्प हिउ केम जा दिट्ठउ पडियउ मलयणाहु ता पणवेवि जउण णराहिवासु ते भिडिय परोप्परु तामसेण
अरुणच्छिच्छोहविच्छुरिय वोमु ।। अइ विसमउ णं खय-समय- सोमु । ।
गये, उसकी आँखों में खून उतर आया, जिनकी लालामी आकाश में भी फैल गयी । वह ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानों अपने बैरी रूपी कमलों को नष्ट करने के लिये अतिविषम प्रलयकालीन सोम (चन्द्र) ही हो ।
वियाण धाउ णाइँ राहु ।। णामेण पसिद्धउ मलयणाहु ।। सिंहाहउ मत्तगइंद जेम ।। णं मरुणाहउ तरुवरु ससाहु ।। उट्टिउ गज्जंतउ सिरिणिवासु ।। णावइ दुज्जोहण भीमसेण । ।
घत्ता — इस प्रकार अपने हाथी पर सवार राजा रविकीर्ति ने गुण (डोरी) से मण्डित प्रचण्ड गाण्डीव धनुष पर दुर्धर शर-पंक्ति को जोड़कर उन नौ यवन पुत्रों के शिरों को भी स्वयं अकेले ही अपने भुजदण्ड से दो भागों में विखण्डित कर डाला। (75)
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शत्रु-राजा का प्रधान सैन्याधिकारी श्रीनिवास राजा रविकीर्ति को अपने बाण - समूह से घेर लेता है
द्विपदी —अपने नौ-नौ पुत्रों के बुरी तरह पतन हो चुकने अर्थात् अग्र पंक्ति वाले बल के अत्यन्त कमजोर हो जाने पर भी वह यवनराज, शत्रु सेना के सिर-कमलों को विधुनित करता (काटता हुआ भी अपने हृदय में संशकित हो उठा।
86 :: पासणाहचरिउ
इसी बीच कुपित होकर मलयनाथ नाम से प्रसिद्ध नरेश अत्यन्त तीक्ष्ण खड्ग-लता एवं कवच धारण कर बाणों से सुसज्जित रथ पर सवार होकर राहु के समान दौड़ा। रविकीर्ति ने उसे भी तीक्ष्ण क्षुरप्र (खुरपे) से मारकर उसी प्रकार पटक दिया, जिस प्रकार की सिंह से आहत होकर मत्त गजेन्द्र पटका जाता है।
प्रचण्ड आँधी से गिरे हुए शाखाओं सहित विशाल तरुवर के समान जब उस राजा मलयनाथ को भी भूमि पर गिरा हुआ देखा, तब यवनराज को प्रणामकर श्रीनिवास नाम का एक राजा गर्जना करता हुआ उठा।
तामसिक वृत्ति वाले (अथवा अन्धकार एवं सूर्य के समान वे) दोनों (राजा श्रीनिवास एवं रविकीर्ति) इस प्रकार भिड़ गये, मानों दुर्योधन एवं भीमसेन ही भिड़ रहे हों, अथवा मानों कंस-दैत्य एवं वासुदेव कृष्ण ही हों, अथवा मानों,