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Fierce fighting between Padmanātha, the vigourus enemy-General and King Ravikīrti.
दुवइ- एत्थंतरे सदप्पु सइँ उहिउ जुइ णिज्जिय पयंगओ।
महिवइ पोमणाहु पोमाणणु पोमालिंगियं गओ।। छ।।
पढमु तेण रणरंगे चूरिओ उप्पएवि करणेहिँ सुंदरो जाम अण्ण संदणि परिट्ठिओ भज्जमाणे एत्थंतरे रहे धणु लएवि सिय भाणु-कित्तिणा पोमणाहु वच्छत्थले हओ पाविऊण चियणं पुणुडिओ ताम तासु चूरिउ महारहो तं मुएवि विज्जए विलग्गओ चडइ जाम तिज्जइ तुरंतओ पुणु वि भग्ग संदणु चउत्थओ सत्तमो वि अट्ठमु पराइओ
भाणुकित्ति रहु बाण पूरिओ।। भाणुकित्ति तह जह पुरंदरो।। ताम तेण सो लहु विणिट्ठिओ।। वासरेस संदणि विहारहे।। संधिऊण णिव माणुकित्तिणा।। धरणिवीढि परिवडिय देहओ।। मेल्लमाण वाणइ ण संठिओ।। मोग्गरेण रविकित्तिणा रहो।। सो वि तेण सहसत्ति भग्गओ।। दलिउ सो वि मणिगण-फुरंतओ।। पंचमो वि छट्ठो पसत्थओ।। सो वि तेण वाणेण घाइओ।।
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पद्मनाथ एवं रविकीर्ति का तुमुल-युद्धद्विपदी—इसी बीच (शत्रु-राजा श्रीनिवास के पतन के तुरन्त बाद ही-) अपनी द्युति से सूर्य-प्रभा को भी जीत लेने
वाला, कमल के मुख के समान सुन्दर तथा जय-लक्ष्मी से आलिंगित देह वाला महीपति पद्मनाथ बड़े
ही दर्प के साथ युद्ध हेतु (यवनराज की ओर से) स्वयं ही उठ खड़ा हुआ। सर्वप्रथम उस पद्मनाथने रणभूमि में स्थित रविकीर्ति के रथ को वाणों से पूर कर उसे चूर-चूर कर दिया। इस विपन्नता की स्थिति में भी राजा रविकीर्ति अपनी इन्द्रियों एवं मन की दृष्टि से पुरन्दर-इन्द्र के समान सुन्दर (एवं हँसमुख) दिखाई देता रहा। जब वह रविकीर्ति दूसरे रथ पर आरूढ हुआ, तो उसे भी उस पदमनाथ ने तत्काल ही विनष्ट कर डाला। सूर्य-रथ के समान तेज कान्ति-सम्पन्न उस रथ के भग्न हो जाने पर सूर्य के समान कीर्ति (आभा) वाले राजा रविकीर्ति ने धनुष लेकर उस पर बाण चढ़ाकर उसे पद्मनाथ के वक्षस्थल पर दे मारा, जिससे वह धरती पर (मूर्च्छित होकर) लुढ़क गया। (थोड़ी ही देर में) चेतना आने पर वह पुनः उठ खड़ा हुआ और रथ पर सवार होकर वह अपने बाण छोड़ भी न पाया था कि रविकीर्ति ने अपने मुदगर की मार से उसके वेगगामी महारथ को चूर-चूर कर डाला।
पदमनाथ जब पुनः नये रथ पर चढ़ा, तब उसे भी रविकीर्ति ने देखते ही देखते भग्न कर डाला। जब पद्मनाथ तुरन्त ही मणियों से स्फरायमान तीसरे रथ पर सवार हआ, तो उसे भी रविकीर्ति ने नष्ट कर दिया। उस पदमनाथ के चौथे रथ को भी उसने भग्न कर दिया, पाँचवें एवं छठे प्रशस्त रथों को भी भग्न कर डाला। पुनः सातवें एवं आठवें रथ पर वह चढा, किन्तु रविकीर्ति ने उन्हें भी अपने बाणों से नष्ट कर उसे पराजित कर दिया। पुनः लार
90 :: पासणाहचरिउ