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घयसित्तउ जलणु व पज्जलंतु गज्जतउ णं खयकालमेहु अइ दुण्णिरिक्खु णं पलय-भाणु आसीविसहर इव कूरदिट्टि हरिणारिव वइरीयणु करालु कुवियउ कयंतु व गहियपाणु महमयरहरुव मज्जाय मुक्कु
पहरणु व सुरिंदहो दरमलंतु।। अमरगिरि णाइँ णिक्कंप देहु ।। ससहरुव समग्गकल णिहाणु।। खयकरणु णाई उग्गमिउ विहि।। कंजरु व कठिणकरु रणरसालु ।। सव्वत्थु वि पवणु व धावमाणु।। समरंगेण परबल सम्मुह दुक्कु।।
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घत्ता- सोहइ सुहयण णिम्मल सुव अणिवारिउ संगामि चलंतउ।
दंडाहउ रिउ अग्गए करेवि गोवाल वि गोहणु चालंतउ।। 72 ||
4/14 The bravery of King Ravikirti.
दुवइ- णव-पाउस-घणोव्व उच्छरियउ छायंतउ णहंगणं।
णिसियाणण विसाल वर वाणहिँ कीलिर वर सरंगणं।। छ।।
अपने प्रहरणों से मानों जिसने इन्द्र के वज्रास्त्र को फीका कर दिया था उसकी गर्जना ऐसी प्रतीत हो रही थी मानों क्षयकालीन मेघ ही गरज रहा हो। (निकट रण भूमि में भी-) उसकी देह ऐसी निष्कम्प थी, मानों वह अचल सुमेरु पर्वत ही हो।
वह रविकीर्ति ऐसा दुर्निरीक्ष्य था मानों प्रलयकालीन सूर्य ही हो। वह समग्र कलाओं का निधान था, मानों पूर्णमासी का चन्द्र ही हो। वह भयंकर सर्प के समान क्रूर-दृष्टि वाला था। वह ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानों प्रलयकालीन वृष्टि का ही उदय हुआ हो। शत्रुजनों के लिये वह सिंह के समान भयंकर था। जिस प्रकार कुंजर कठोर लँड वाला तथा रणप्रिय होता है, उसी प्रकार वह राजा रविकीर्ति भी कठोर भुजाओं वाला तथा रण रसिक था। ___ जिस प्रकार क्रुद्ध कृतान्त (यमराज) प्राणियों के प्राणों को निगल जाता है, उसीप्रकार शत्रुओं के प्राणों को लेने वाला तथा सर्वत्र पवन वेग से दौड़ने वाला वह रविकीर्ति मर्यादा विहीन महासमुद्र के समान शत्रुसेना में जा दुका (घुस गया)।
घत्ता- जिस प्रकार गोपालक अपने हाथ में डण्डा लेकर अपने गोधन को आगे बढ़ाता (हाँकता) है, उसी प्रकार
वह राजा रविकीर्ति भी अपने हाथों में युद्ध का डण्डा (भाला, गदा आदि) लेकर शत्रु को आगे कर अबाध गति से संग्राम-भूमि से हाँकता हुआ उसी प्रकार सुशोभित हो रहा था, जैसे सुहृदजनों का निर्मल यश। (72)
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राजा रविकीर्ति का शौर्य-वीर्य-पराक्रम वर्णनद्विपदी- जिस प्रकार वर्षाकालीन मेघ नभांगण को आच्छादित कर लेते हैं, उसी प्रकार (राजा रविकीर्ति के-)
तीक्ष्ण मुख वाले उत्तम बाणों द्वारा अप्सराओं के क्रीड़ास्थल बने हुए सुरांगण (आकाश) को कीलित कर दिया गया।
82 :: पासणाहचरिउ