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(197) सिन्धु नदी के तट पर मरुभूति की कमठ से अचानक ही भेट (198) कमठ मरकर विषैले कुक्कुट-सर्प की योनि प्राप्त करता है (199) राजा अरविन्द के पूर्वभव : चतुर्गति दुख-वर्णन (200)
राजा अरविन्द मुनि-दीक्षा लेकर सल्लकीवन में कठोर तपस्या करने लगता है (201) महासार्थवाह समुद्रदत्त सदल-बल अरविन्द मुनीन्द्र से धर्म-प्रवचन सुनता है (202) दातार के सात गुण (203)
दातारों के लक्षण (204) अधमदान एवं उत्तम दान की विशेषताएँ (205) अभयदान, आहारदान एवं औषधिदान का महत्त्व (206) शास्त्रदान का महत्त्व एवं उत्तम पात्रादि भेद-वर्णन (207) ग्यारह प्रतिमाएँ एवं मध्यम तथा जघन्य पात्रों के लक्षण (208) पात्र-भेद-जघन्य पात्र, कपात्र एवं अपात्र (209) उत्तम पात्र, मुनिराज के लिये आहारदान देने की विधि एवं उसका तथा
अन्य दानों के फल
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बारहवीं सन्धि (पृष्ठ 243-261) (210) गजराज-अशनिघोष, मुनीन्द्र अरविन्द से एकाग्रभावपूर्वक अपना पूर्वभव सुनता है । (211) अरविन्द मुनीन्द्र के उपदेश से प्रभावित होकर वह गजराज-अशनिघोष व्रत ग्रहण कर लेता है
244 (212) गजराज अशनिघोष लगातार चार वर्षों तक कठोर व्रताचरण करता रहता है 245 (213) पूर्वजन्म का शत्रु-कुक्कुट-सर्प उस गजराज को डॅस लेता है
246 (214) गजराज ने संन्यास धारण कर शुभ ध्यान पूर्वक देहत्याग किया और सहस्रार-स्वर्ग में देवेन्द्र हुआ।
247 (215) राजा विद्युद्वेग, समुद्रसागर-मुनि से प्रव्रज्या ग्रहण करता है
248 (216) संसार की नश्वरता जानकर राजा किरणवेग भी. दीक्षा ले लेता है
249 (217) दीर्घकाय अजगर, मुनिराज को निगल जाता है। अजगर भी दावाग्नि में जलकर भस्म हो जाता है
250 (218) राजा बज्रवीर अपने पुत्र चक्रायुध को राज्य-भार सौंपकर दीक्षा ले लेता है 251 (219) राजा चक्रायुध भी अपने पुत्र बजायुध को राज्य-पाट सौंपकर दीक्षित हो जाता है 252 (220) पूर्वजन्म का जीव-चक्रायुध-सुरेश, देव-योनि से चयकर रानी प्रभंकरी के गर्भ में आता है
253 (221) एक दिन चक्रवर्ती-सम्राट् कनकप्रभ सुमधुर आकाशवाणी सुनता है
254 (222) चक्रवर्ती-चक्रायुध घोर-तपस्या कर तीर्थंकर-गोत्र का बन्ध करता है
255 (223) भिल्लाधिपति करंग के जन्म-जन्मान्तरों का वर्णन
256 ___ (224) राजपुरोहित विश्वभूति एवं उसके पुत्रों के जन्म-जन्मान्तरों का वर्णन
257 (225) जन्म-जन्मान्तरों के दुख सुनकर राजा हयसेन एवं वामादेवी को वैराग्य हो जाता है और वे दीक्षा ले लेते हैं
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