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Powerful Kings from distant countries also joined with their army to support
Prince Pārswa to whom he pays respects to all of them. दुवइ- परबल मयंगलोह पंचाणणु पय-पाडिय पुरंदरो।
दुद्दम मारवीर सर णिरसणु पासकुमारु सुंदरो।। छ।। सम्माणइँ दाणे णिव-समूह
चंडासि विहंडिय कुंभि जूहु।। हारेण कीरु मणि-मेहलाए
पंचालु-टक्कु-संकल-लयाए।। जालंधरु पालंबेण सोणु
मउडेण णिबद्ध सवाण तोणु।। केऊरं सेंधउ कंकणेहिँ
हम्मीरराउ रंजियमणेहँ।। मालविउ पसाहिउ कुंडलेहँ
णिज्जिय णिसि दिणयर मंडलेहिं।। खसु णिवसणेहिँ णेवालराउ
चूडारयणेण गहीर-राउ।। कासुवि अप्पिउ मयमत्तुदंति
णं जंगमु महिहरु फुरिय कंति।। कासुवि उत्तुंगु तरलु तुरंगु
णावइ खय मयरहरहो तरंगु।। कासुवि रहु करहु विइण्णु कासु जो जेत्थ दच्छु तं दिण्णु तासु।। इय सयलु सबलु बल कियउ जाम हयसेण णराहिउ पुत्तु ताम।। घत्ता--णिय तेओहामिय खरतरणि करपहार णिददलिय करिंदहो।
मणिगण णिम्मिय संदणि चडेवि णिग्गउ सम्मुहु जउणणरिंदहो।। 64||
4/5 यवनराज के साथ युद्ध में कुमार पार्व का साथ देने के लिये दूर-दूर से
अनेक राजागण ससैन्य पधारे। पार्व द्वारा उनका सम्मानद्विपदी–वे कुमार पार्श्व अत्यंत सुन्दर एवं वीर थे, पर-सेना रूपी गज-समूह के लिए वे सिंह के समान थे, इन्द्र
को (अपने चरणों में) झुकाने वाले तथा दुर्दम कामवीर के बाण का नाश करने वाले थे। जो राजा अपने प्रचण्ड खड्ग से गज-यूथ को विखण्डित करने वाले थे, उन सभी को पार्श्व प्रभु ने (विविध वस्तुओं के दान से) सम्मान देकर प्रसन्न किया। कीर देश के राजा को हार से, पंचालदेश के राजा को मणिमयी मेखला से, टक्क देश के राजा को (स्वर्णमयी) संकललता से (हार की लड़ी से), जालंधर देश के राजा को प्रालंब (लंबे हार) से और सोन देश के राजा को मुकुट तथा बाण सहित तूणीर से निबद्ध किया। ___ सिन्धु देश के राजा को केयूर (भुजबन्ध) से, हम्मीर राजा के चित्त को रंजित करने वाले कंकणों से, मालव देश के राजा को चंद्र-सूर्य मण्डलों को जीतने वाले कुंडलों से प्रसाधित किया।
खस देश के राजा को उत्तम वस्त्रों से, गम्भीर उद्घोष करने वाले नेपाल के राजा को चूडारत्न से प्रसाधित किया।
इसी प्रकार किसी को मदमत्त गज दिया गया, जो ऐसा प्रतीत होता था, मानों वह गज न होकर एक चलताफिरता दीप्त कान्ति वाला कोई पर्वत ही हो। किसी को उत्तुंग चंचल तुरंग दिया गया, जो ऐसा प्रतीत होता था, मानों वह क्षयकाल के समुद्र की कोई तरंग ही हो। किसी को रथ दिया गया और किसी को करभ (उष्ट्र). इनके अतिरिक्त भी जो जिस विषय में दक्ष था, उसे वही-वही दिया गया। इस प्रकार जब अपनी समस्त सेना को सबल और सुसज्जित कर दिया, तब राजा हयसेन का पुत्र कुमार पार्श्व
घत्ता- अपने तेज-समूह से सूर्य-मण्डल को भी निष्प्रभ कर देने वाले तथा मणियों से जटित रथ पर सवार होकर
अपने कर-प्रहार से करीन्द्रों को भी दलित कर देने वाले उस यवनराज के सम्मुख चले। (64)
पासणाहचरिउ :: 73