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Fierce fighting between the two enemies begins. दुवइ — रविकित्तिवि चडेवि रहे हयवरे कोवि णरिंदु दुद्धरो । मयजल बूडिय करड करि-कंधरि कोवि मयारि-कंधरो ।। छ । ।
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एयहिँ अवि सोहइ जिणो पासु अहि य मणजूरेण इय सबलु आवंतु करकलिय करवालु पाउण सहसत्ति
जय भूरि समरेहिं । । णिम्महिय भवपासु ।। संगाम तूरेण ।। बहु व दावतु ।। रविकित्ति भूवालु ।। पक्खरेवि वर पत्ति । । रण-रंग-सिरि-रत्तु ।। दाहिणउ अणमद्दु ।।
उणोवि संपत्तु अगणंतु सिवसद्दु
हयपुच्छ संजलणु रुहिरोह वरिसणउ पुणु-पुणु वि छिंकियउ
बहुमू दरमलणु ।। जस- रासि णिरसणउ ।।
मंतीहिं संकियउ ।। पुहु रुहिर मंडियउ ||
अहिणाहि खंडियउ
अइकरुण रोवणउ वायसहो कडु-राउ
बललच्छि लोवणउ ।। संहरिय अणुराउ ।। कूल रुभाउ ||
नियमणहो कय ताउ घत्ता- समरंगणे रणतूरइँ हणेवि दूरज्झिय मज्जायइँ तावइँ ।
अभिडियइँ णिरु बिण्णि वि बलइँ खयमरु पेरिय जलणिहि णावइँ ।। 65 ।।
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त्रु सेनाओं में तुमुल-युद्ध प्रारम्भ
द्विपदी - और इधर, राजा रविकीर्ति भी रथ पर आरूढ़ हुआ। कोई दुर्धर राजा उत्तम घोड़े पर सवार हो गया और मृगारिसिंह के समान कांधौर वाला कोई सुभट मदजल में डूबे हुए गण्डस्थल वाले हाथी के कन्धे पर जा बैठा ।
इस प्रकार (पूर्वोक्त) एकत्रित राजाओं तथा पदाति सेना से घिर हुए अनेक युद्धों के जीत लेने में सक्षम तथा भवपाश का उन्मूलन कर देने वाले वे कुमार पार्श्व (सुभटों के मध्य ) अत्यन्त सुशोभित हो रहे थे । (यवन जैसे) दुर्धर शत्रुजनों के मन को कँपा देने वाला संग्राम-तूर बजा दिया गया। शत्रुओं के बल को विदीर्ण करने वाले तथा सैन्यसमुदाय के साथ तलवार से भूषित हस्त वाले राजा रविकीर्ति को सहसा ही आता हुआ जानकर विपक्षी - शत्रु भी अपनी शक्तिशाली सेना को पंक्तिबद्ध सजाकर रण-रंगश्री में आरक्त वह यवनराज भी रणभूमि की ओर चल पड़ा । चलते समय उसने अपनी दाहिनी ओर अशुभ सूचक शिवा (शृगाली) के शब्द को भी अनसुना किया, यशराशि का निरसन करने वाली घोड़ों की पूँछ के जलने तथा अनेक जीवों के रौंदे जाने के कारण रक्त समूह की वर्षा, संशकित मन्त्रियों का बारम्बार छींकना, खण्डित एवं रुधिर युक्त सर्प द्वारा रास्ता काटा जाना, बल-लक्ष्मी के लोप का सूचक अतिकरुण रुदन का होना, अनुराग का संहार करने वाले वायस का कटु शब्द बोलना, अपने मन के ताप की सूचक प्रतिकूल वायु का चलना आदि को भी उस यवनराज ने कुछ नहीं समझा ।
घत्ता — तभी, मर्यादाओं का दूर से ही त्याग कर, समरांगण में दोनों दलों के रण- तूर बज उठे और दोनों ओर के सैन्य दल ऐसे भिड़ गये, मानों क्षयकालीन प्रलयवायु से प्रेरित होकर समुद्र-ज्वार ही उठ खड़ा हुआ हो । (65)
74 :: पासणाहचरिउ