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King Ravikirti of Kuśasthala sends a message to King Hayasena.
अवरु समासमि तुज्झु णरेसर णिवसइ पट्टणु एत्थु कुसत्थलु अणु ण दीस जासु सरिच्छउ तहँ विसइ जीमूय- महासरु रज्जु करतो तो महिणाहहो पेक्खतहो णक्खत्तु ल्हसंतउ वइराइल्लिं रज्जु मुएप्पिणु संजायउ णिग्गंथ दियंबरु जाता तो सुअ-आएसें हउँ आउ तुहुँ चलण णवंतउ णयरायर पट्टणइं मुअंतर सो जंपइ परमेसर अम्हहँ
सउल-विउल-गयणयल-दिणेसर ।। उल्लूरिय वइरिय वंसत्थलु ।। तासु पपइको गुणु णिच्छउ ।। सक्कवम्मु णामेण महीसरु ।। माणिणि मण मारण- रइणाहहो ।। संजायउ वइराउ महंतउ ।। रविकित्तिहिणियपुत्तहो देष्पिणु ।। पंचमहव्वय-भार-धुरंधरु ।। कंपाविय णिक्कंप णरेसें ।।
करजुअल भालयलि ठवंतउ ।। सपरियणहो तुह गुणइँ लवंतउ ।। अण्णा गइ मिल्लेविणु तुम्हहँ ।।
घत्ता - आसु पडिच्छमि णियसिरेण जं तुहु देहि णराहिवइ । मा भंति करेज्ज सुवयण-पह - परिणिज्जिय ताराहिवइ ।। 41 । ।
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कुरास्थल के राजा राक्रवर्मा को वैराग्य तथा राजकुमार रविकीर्ति का राज्याभिषेक: वह रविकीर्ति हयसेन के यहाँ एक सन्देश भेजता है
(दूत ने पुन: कहा- ) सकल विपुल गगन-तल के लिये सूर्य के समान हे राजन्, अब मैं आगे की बात आपसे कहना चाहता हूँ, (उसे भी सुनिये - ) इसी भारत -भूमि पर अरिजनों को वंशस्थलों को उजाड़ देने वाला कुशस्थल नाम का एक पट्टन है, जिसके सदृश अन्य कोई पट्टन दिखाई नहीं देता। उस कुशस्थल- पट्टन के वास्तविक गुणों का वर्णन कौन कर सकता है? वहाँ जीमूत (मेघ) के समान महास्वर वाला शक्रवर्मा नाम का राजा राज्य करता है।
मानिनी-नारियों के मन को मारने वाले कामदेव के समान उस राजा ने राज्य करते हुए किसी एक दिन आकाश में काँपता हुआ सुन्दर नक्षत्र देखा। उसे देखकर उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया। वैराग्य के कारण राज्य को छोड़कर एवं रविकीर्ति नाम के अपने पुत्र को राज्य देकर जब वह पंचमहाव्रतभार का धारक धुरन्धर, निर्ग्रन्थ दिगम्बर हो गया, तब समस्त शत्रु-नरेशों को कंपा देने वाले उस शक्रवर्मा के पुत्र रविकीर्ति के आदेश से ही मैं आपके चरणों को नमन करता हुआ, भाल-तल पर कर-युगल को रखता हुआ, अनेक नगर एवं पट्टन समूहों को पीछे छोड़ता हुआ तथा सपरिजन आपके सद्गुणों का सर्वत्र बखान करता हुआ, यहाँ आपकी सेवा में आया हमारे परमेश्वर राजा रविकीर्ति ने आपके लिये मेरे द्वारा कहलवाया है कि - "हे राजन्, आपको छोड़कर मेरी अन्य कोई गति नहीं ।"
घत्ता - " अपनी मुख - कान्ति से चन्द्र मण्डल को भी जीत लेने वाले हे नराधिपति, मैं आपके समस्त आदेशों को शिरोधार्य करता हूँ । आप मुझे आदेश दीजिये तथा मेरे कथन में किसी भी प्रकार की भ्रान्ति मत कीजिये।" ( 41 )
48 पासणाहचरिउ
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