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3/4 The learned and rational courtiers console Hayasen through various preachings explaining the evils of remaining in deep grief and sorrowful condition. सोउ जणहँ संताउ पयासइ
सोउ सरीरहो कति विणासइ।। सोएँ भव-मयरहरे पडिज्जइ
सोएँ सुइ-मइ-धीरिम खिज्जइ।। सोएँ सपरंतरु ण मणिज्जइ
सोएँ सीलहो पाणिउँ दिज्जइ।। सोहाऊरिउ को ण पणट्ठउ
एरिसु सोउ वियाणिवि दुट्ठउ।। को विरयइ णरणाह सयाणउँ एक्कु मुएविणु बालु अयाणउँ ।। जइ भंगुरु संसारु वियप्पेवि
णियपुत्तहो णियलच्छि समप्पेवि।। मयरद्धय-माणुण्णइ मंजेवि
दुद्धरु मोह-महाभडु गंजेवि।। सिद्धिविलासिणि रइ उक्कंठिउ बारह-विह मुणि-तवसिरि संठिउ।। ता किं तुह सो सोय ण जुत्तउ जो ण मोह विसहर विस भुत्तउ।। पच्चेलिउ एरिसु बोल्लिज्जइ सो धण्णउ वउ पालिज्जइ।। दिव देव तुह ससुरसरिच्छउ । अण्णु ण दीसइ महियले णिच्छउ।। सो सोइज्जइ जो दुहे मज्जइ गमणागमणु करंतउ खिज्जइ।। घत्ता--पुणु एहु परमेसरु परममुणि गुण-मणि-णिहि करणाह सुणु।
छिंदेवि चउगइ संसारतरु पावेसइ णिव्वाण पुणु ।। 43 ।।
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विवेकशील विद्वानों तथा सभासदों द्वारा राजा हयसेन को शोक त्याग करने का उपदेश।
शोकाकुल रहने से हानियाँ(हे राजन्) शोक मनुष्यों के लिए संताप उत्पन्न करता है। शोक शरीर की कान्ति का विनाश करता है। शोक करने से यह जीव संसार-समुद्र में जा पड़ता है। शोक से श्रुति, मति एवं धैर्य नष्ट हो जाता है। शोक से स्व-पर का भेद नहीं जाना जा सकता। शोक से शील को पानी दिया जाता है (अर्थात शोक से शील नष्ट हो जाता है)। (संसार में) ऐसा कौन है, जो शोक से पूरी तरह नष्ट नहीं हो गया? शोक की ऐसी दुष्टता जानकर हे नरनाथ, एक अजान बालक को छोड़ कर, ऐसा कौन सयाना (चतुर) है, जो शोक करेगा।
यदि वह राजा शक्रवर्मा संसार को क्षणभंगुर जानकर (विचार कर-विकल्प कर) अपने पुत्र को अपनी राज्यलक्ष्मी समर्पित कर, मान से गर्वोन्नत मकरध्वज को नष्ट कर, दुर्धर्ष मोह-महाभट को गाँजकर (मरोड़ कर), सिद्धिवधू के साथ रति के लिये उत्कण्ठित होकर वह मुनियों के बारह प्रकार के तप में संस्थित हो गया है और जिसे विषधर के विष के समान भोगों से मोह नहीं रहा, तो उसके लिये शोक करना क्या आपके लिये उपयुक्त है? प्रत्युत, इसके बदले मैं आपको तो यह कहना चाहिए कि वह धन्य है, जो व्रतों को पालता है। हे देवों के देव, आपके श्वसुर (राजा शक्रवर्मा) के समान तपस्वी निश्चय से मुझे तो इस पृथ्वीतल में अन्य कोई भी दिखाई नहीं देता। शोक तो केवल उसी के लिये किया जाना चाहिए, जो संसार के दुःखों में डूबा रहता है और जन्म-मरण के कारणों में ही अपने को खपाता रहा है। घत्ता- और हे नरनाथ, मेरी बात सुनिये, गुणरूपी मणियों के निधि परममुनि वे परमेश्वर (राजा शक्रवर्मा) चतुर्गति
रूपी संसार-वृक्ष का छेदन कर (शीघ्र ही) मोक्ष प्राप्त करेंगे। (43)
50 :: पासणाहचरिउ