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पर अज्जवि तुहु वट्टहि बालउ तणुरुह दुक्करु होइ रणंगण अच्छउ ता रणु दूरि जगुत्तम संगरु णामु जि होइ भयंकरु ठाहि एउ जाणेसहि णियघरि तं आयण्णिवि पासु पयंपइ जो बालोवि बप्प पंचाणणु लीलएँ मत्त गइंदहँ दारइ जो वइसाणर कणु वि गिरिंदइँ जर तिण संचउ तासु दहंतहो जा आसीविस हरइ वियारिवि सिसुव विहंगमु कवणु गहणु तहो जो चउरंगु वि बलु संघारइ ।
सिरिस-कुसुम-संचय-सोमालउ।। रिउ-वाणावलि पिहिय णहंगणु।। णाणकिरण विणिवारिय जण तम।। तुरय-दुरय-रह-सुहड रवयंकरु।। कीलंतउ कुमरहि सहुँ मणुहरि।। दरु विहसेवि मणावि ण कंपइ।। णह चुअ मोत्तिय मंडिय-काणण।। सो कुरंकुवणियरु ण मारइ।। अवलेवेंण दहइ तरुविंद।। किं जायइ समु तेय महंतहो।। मरुवहे गच्छइ चंचुइ धारिवि।। इयर भुयंगम माणु मलंतहो।। तासु हणंतहो रिउ को वारइ।।
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घत्ता- जइ देहि वप्प तुहुँ महु वयणु बंधवयण मण-सुह-जणण।
ता पेक्खंतहँ तिहुअण जणहँ कोऊहलु विरयमि जणण।। 53 ।।
3/15 Prince Pāršwa explains and clarifies to his father his immence Vigour.
णहयलु तलि करेमि महि उप्परि वाउं वि बंधमि जाइ ण चप्परि।।
तुम अभी बालक हो। शिरीष-पुष्प के संचय के समान सौम्य वदन हो। हे पुत्र, रणांगण-बड़ा दुष्कर होता है। वहाँ का नभांगण रिपु की वाणावलि से ही ढंका रहता है। अतः अपनी ज्ञान-किरण के द्वारा जगत् के तम को दूर करने वाले हे जगदुत्तम, तुम अभी रण से दूर ही रहो तो अच्छा है। संगर (युद्ध) का नाम ही भयंकर है क्योंकि वह (युद्धस्थल) घोड़े, हाथी, रथ तथा सुभटों का क्षय करने वाला है। ऐसा जानकर अपने घर में मनोहर कुमारों के साथ क्रीड़ा करते हुए रहो, यही उत्तम है।
पिता जी का कथन सुनकर पार्श्व ने मुस्कुराते हुए और बिना किसी घबराहट के कहा- हे वप्प! सिंह यदि बाल भी होता है, तो भी वह अपने नखों से (बड़े-बड़े गजों के मस्तक से) गिराये हुए मोतियों से कानन को मण्डित कर देता है। जो सिंह-शाबक लीला-लीला में ही मत्त गजेन्द्रों को विदार डालता है, क्या वह मृगों और गीदड़ों को नहीं मार सकता? वैश्वानर (अग्नि) का एक कण भी क्या पहाड़ों को अपनी लपेट में लेकर उसके तरुवृन्दों को दग्ध नहीं कर देता? जीर्ण तृण-समूह को भस्म करते हुए उस अग्निकण की क्या बड़े तेज के साथ समानता नहीं होती? जब गरुड़-पक्षी अपने शैशवकाल में ही भयानक सर्प का अपहरण कर उसे चोंच में दबाकर आकाश मार्ग में उड़ जाता है और उसे विदीर्ण कर डालता है, तब क्या वह अन्य भुजंगमों का मान-मर्दन नही कर सकता? जो चतुरंग-सेना का नाश कर सकता है, उसे अन्य शत्रुओं के मारने से कौन रोक सकता है। घत्ता- हे बप्प, यदि आप बान्धव-जनों के मन को सुख देने वाले हैं, तो आप मुझे युद्ध में जाने देने का वचन दीजिए
और तब हे जनक, आप देखिए कि त्रिभुवनजनों के लिए मैं किस प्रकार का कौतुहल उत्पन्न करता हूँ। (53)
3/15 राजकुमार पाल ने अपने पिता हयसेन को अपनी चमत्कारी प्रचण्ड शक्ति का परिचय दिया(पिता हयसेन का उपदेश सुनकर बालक पार्श्व ने उत्तर में कहा- पिताजी, मुझमें इतनी शक्ति है कि यदि
60 :: पासणाहचरिउ