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चउत्थी संधी
4/1 Thundering march of Prince Pārswa towards the challenging battle-field. घता- संजायए दिणयरकरपसरे दिण्णु पयाणउ पासकुमार।।
रूसेविणु जउणणिवहो उवरि णियलावण्ण-विणिज्जियमार।। छ।। दुबइ-वलिय अणेय सुहडसय करिवर-कर-संफुसिय णहयला।
सारहिँ सज्जिरह चक्कचय हरिवरखुरहिँ खणंति महियला।। छ।। इय चवेवि चारु चंदाहवत्तु
कणय-मय-दंड सेयायवत्त।। णीयउ गंगातीरिणिहे तीरि
मयरोहरहारहिँ णिहयणीरि।। तहिँ तहो पासहो मणिमयविचित्तु देवहिँ णिवासु विरइउ विचित्तु।। संपाडिय णिवसण-भूसणाइँ
भायण-भौयण-सयणासणाइँ।। मज्जण-धूअणइँ-विलेवणाइँ
मण-चिंतिय सयल' पावणाई।। 10 मयगल गुलुगुल-गासइँ गसंति हय लोण-दाण दंसणे तसंति।।
रइ करहिँ करहँ तरुपल्लेवसु दासेरु जंति इंधण तणेसु ।। पडमय मंडवे णरवर सुअंति
कुहिणीहिँ समुडमउ समु मुअंति। रहवर मणि-किरणहिँ जिगिजिगंति हुअवह चुल्लीमुहे धगधगंति।।
4/1 __ पार्वकुमार का शत्रुओं को दहला देने वाला रण-प्रयाण (जारी)घत्ता- जब सूर्य-किरणों का प्रसार हो गया, तब अपने लावण्य से कामदेव को भी जीत लेने वाले पार्श्वकुमार
ने यवनराज पर क्रुद्ध होकर उसके साथ युद्ध करने के लिये (जय घोष करते हुए) पुनः प्रयाण किया
और अपनी सेना को आदेश देते हुए कहाद्विपदी-सैकड़ों सुभटों से घिरे हुए तथा अपनी उत्तुंग सैंडों से आकाश को भी घिस डालने वाले श्रेष्ठ गजों से
सुसज्जित सारभूत रथों के चक्रों तथा उत्तम कोटि के घोड़ों के खुरों द्वारा महीतल को खोद (रौंद) डालो। यह कहते हुए रम्य चन्द्र तुल्य मुख वाले, स्वर्ण दण्ड एवं श्वेत आतपत्र धारण किये हए उन पार्श्वकुमार को मकरों और ग्रहों से टकराए जाने के कारण अवरुद्ध नीर वाली गंगा नदी के तीर पर ले जाया गया।
वहाँ (गंगातीर) पर देवों द्वारा कुमार पार्श्व के लिये एक मणिमय चित्र-विचित्र आवास (Guest House) का निर्माण कर दिया गया, जिसमें वस्त्र, आभूषण, भाजन (सोने-चाँदी के बर्तन) भोजन, शयनासन, मज्जनगृह (Bathroom), धूपन, विलेपन तथा मन में चिन्तित पवित्र समस्त प्रकार के भोगोपभोगों की सामग्रियाँ सम्पादित कर दी गई। ___वहाँ हाथी तो गुलगुलों (गुड़ के बने हुए पकोड़े) के ग्रास (कौर पर कौर) खाये जा रहे थे किन्तु घोड़े नमकदान के समय उसे देखते हुए भड़क रहे थे। ऊँट तरु-पल्लवों से रति कर रहे थे और खच्चरों (दासेरु) को ईंधन तथा घास लाने के लिये ले जाया जा रहा था। ___ पटों से निर्मित मण्डपों में श्रेष्ठ सुभट सो रहे थे और मार्गजनित अपने श्रम (थकावट) को दूर कर रहे थे। रथवर मणि-किरणों से जगमगा रहे थे और चूल्हों के मुख में अग्नि धगधगा रही थी। झटके से खूटा तोड़कर वृषभ (बैल)