________________
पाय-पहार गिरि-संचालमि इंदहो इंदधणुह उच्छालमि कालहो कालत्तण दरिसावमि अग्गिकमारहो तेउणिवारमि तेलोक्कु वि लीलएँ उच्चायमि ताराणियरइँ गयणहो पाडमि णहयर-रायहो गमणु णिरुंभमि णीसेसु वि णहयलु आसंघमि विज्जाहर पयपूरु वहावमि मयणहो माण मडप्फरु भजमि। देक्खहि मुज्झ परक्कम बालहो
णीरहि णीरु णिहिलु पच्चालमि।। फणिरायहो सिरि-सेहरु टालमि।। धणवइधण-धारा वरिसावमि।। वारुण-सुरु वरिसंतउ धारमि।। करयल-जुअलें रवि-ससिच्छायमि।। कूरग्गह मंडलु णिद्धाडमि।। दिक्करिहि कुंभत्थलु णिसुभमि।।, जायरूव धरणीहरु लंघमि।। सूलालंकियकरु संतावमि।। भूअ-पिसाअ-सहासइँ गंजमि।। उअरोहेण समुण्णय भालहो।।
घत्ता- तं सुणेवि वयणु पासहो तणउँ हयसेणेण समुल्लविउ ।
हउँ मुणमि देव तुहुँ बाहुबलु पर मइँ णेहें पल्लविउ ।। 54 ।।
3/16 At last, King Hayasen gives his concent to prince Pārswa to go to fight carefully with the cruel Yavanrāja. He marches towards the battle-field with all the four types of trained
army (Chaturangiņi Senā) with favourable prophetic signs.
जइ अच्छहि ण णिवारिउ सुंदर . जस-सलिलेण भरिय गिरिकंदर।। मैं चाहूँ तो) नभस्तल को नीचे कर दूँ और महीतल को ऊपर। वायु को ऐसा बाँध दूँ कि एक डग भी आगे न बढ़ सके। अपने पाद-प्रहार से गिरि को भी संचालित कर दूँ और समुद्र के समस्त जल को उलीच डालूँ। इन्द्र के इन्द्रधनुष को भी तोड़ डालूँ। फणिराज के सिर से उसका शेखर तोड़ दूँ। काल (मृत्यु) को भी कालपना दिखा दूँ। कुबेर के यहाँ भी धनवर्षा कर दूँ। अग्निकुमार की तेजस्विता को समाप्त कर दूँ। बरसते हुए वरुणदेव को पकड़ लूँ। लीला-लीला में ही तीनों लोकों को ऊँचा उठा लूँ। अपनी हथेलियों से सूर्य-चन्द्र को ढंक दूं। समस्त तारा-समूह को गगन तल से पटक हूँ, क्रूर ग्रह-मण्डल को अपने स्थान से निकाल फेंकूँ। गरुड़राज (पवनराज) का गमन रोक दूं। दिग्गजों के गण्डस्थलों को तोड़-फोड़ डालूँ, सम्पूर्ण आकाश को संकुचित कर दूँ। जातरूप (सुमेरु) पर्वत को भी लाँघ जाऊँ। विद्याधरों को (क्षीरसागर के) जल-प्रवाह में बहा दूँ और त्रिशूलधारी को अभिशाप दे दूँ, कामदेव के अभिमान को चूर-चूर कर दूँ सहस्रों भूत-पिशाचों को मटियामेट कर दूँ। हे पिताजी, उन्नत भाल वाले मुझ बालक का भी (युद्ध में जाने की आज्ञा देकर) कुछ पराक्रम तो देख लीजिए
घत्ता-- बाल-पार्श्व का कथन सुनकर राजा हयसेन ने कहा- हे देव, मैं तुम्हारे बाहुबल को जानता हूँ किन्तु मैंने
तो स्नेहवश ही तुम्हें ऐसा कहा है (अर्थात्, युद्ध में जाने से रोका है)। (54)
3/16 राजा हयसेन पार्श्व को यवनराज से युद्ध करने की स्वीकृति प्रदान कर देते हैं।
पार्श्व का चतुरंगिणी-सेना के साथ शुभ-शकुनों के मध्य रण-प्रयाण(बालक पार्श्व का उत्साह भरा कथन सुनकर राजा हयसेन ने कहा)- अपने यश रूपी जल से गिरि-कन्दराओं
पासणाहचरिउ :: 61