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कावि णारि जंपइ जणमणहरु तुज्झु पसाएँ परजइ सुंदरु अरि-करि-कुंभत्थले पउ देप्पिणु तासु करावहि महु बलउल्ल्उ ता पइँ पिययम भल्लउ मण्णमि कावि णारि वज्जरइ हियत्तें भीम भडेहिँ समाणु भिडत्तें गयणंगणि सुरयणु हरिसंतें सिंगारु वितहि पिय पयडेव्वउ कर-ताडण दंतच्छय गहणहिँ परिरंभहिँ खर-णहर-णिवायहिँ
अत्थिहारु महु मंडिय थणहरु।। कसण सिणिड्ढ सुकोमल कंदरु।। दसण-मुसल उप्पाडेवि लेप्पिणु ।। एक्क वि सयलाहरणह भल्लउ।। पणि घिवंतु णयणे अवगण्णमि।। पइँ समरंगणि णाह पयतें।। अहिमाणोरु गिरिंद चंडतें।। वीर-वित्ति सव्वहँ दरिसंतें।। बार-बार विहडेवि घडेव्वउ।। केसायट्टण उमडवयणहिँ।। बहुविह करण सद्द-संघायहिँ।।
घत्ता- कावि भणइ णारि भो-भो सुहय जइ महु सुरय समिच्छसि।
ता पर गय घड णारिहिँ तणउँ पाणि म कंत पडिच्छिहसि।। 49।।
3/11 Heart-hitting immotional feelings and tearfull words with choked throat by the wives to the soldier-husbands eagerly marching towards the battle-field. कावि णारि जंपइ सहु णाहँ
ललियक्खरहिँ ललिय-मयणाह।। सुभट से उसकी सुन्दरी, कृश, स्निग्ध एवं सुकोमल देहवाली नारी ने कहा- मेरे स्तन-भार को सुशोभित करने वाला यह हार (मंगल सूत्र) आपके प्रसाद से ही मिला है, परन्तु हे पतिदेव, यदि शत्रु के गज के कुम्भस्थल पर पदाघात कर मुसल समान गज दन्तों को उखाड़ कर (तोड़ कर) उसी गजदंत से मेरे लिये बलय (कडे) बनवा देंगे, तो एकमात्र होते हुये भी वह मेरे लिये सकल आभरणों से अधिक श्रेष्ठ होगा और तभी मैं आपको अपना भला प्रियतम मानूंगी। अन्यथा, मेरी दृष्टि में आप घृणित तथा अनादर के पात्र होंगे। __कोई नारी प्रेम-पूर्वक अपने हृदयेश से बोली- हे नाथ, आप युद्धांगण में प्रयत्न पूर्वक (सावधानीपूर्वक) दर्पोद्भट शत्रुरूपी पर्वत पर चढ़ते हुए तथा उसी के समान भीमकाय वाले भटों से भिड़ते हुए, नभांग को हर्षाते हुए, अपनी वीरवृत्ति (क्षत्रिय-रीति-युद्ध में पीठ न दिखाना) सबको दिखाते हुए, जब आप वापिस लौटेंगे तब हे प्रियतम, मैं (आपके समक्ष) अपने समस्त शृंगार करूँगी तथा बार-बार उनका विघटन कर पुनः पुनः घड़ाऊँगी।
ग्रहण, आलिंगन, खर (तीक्ष्ण)- नखाघात, निपात, शैया-शयन केशाकर्षण, उदभटवचन और भी अनेक प्रकार के करण आदि के साथ घत्ता- कोई नारी बोली- भो-भो सुभग ! यदि आप मेरी सुखद सुरति चाहते हैं, तब हे कान्त, शत्रु की गज
घटा के (गण्डस्थलों के समान-) समान घनस्तनी नारियों के साथ पाणिग्रहण की प्रतीक्षा-कामना मत करना। (49)
3/11 रण-प्रयाण के लिये व्याकुल सुभट-पतियों के लिये उनकी पलियों के मर्मभेदी प्रतिबोधन
कोई नारी ललित कामदेव के समान सुन्दर अपने नाथ से ललित अक्षरों में कहने लगी कि-- आपका वक्षःस्थल
56 :: पासणाहचरिउ