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King Hayasen plunges into deep grief after getting the message sent by King Ravikīrti regarding the renunciation of his father, King Sakravarman. तं णिसुणेवि वओहर-जंपिउ
सयलु सरीरु महीसहो कंपिउ।। विहुणिवि ससिरु णिमीलवि णयण महियलि घुलियउ बंघिवि रयणइँ।। पुणु वि समुट्ठिउ मउलिय-लोयणु णिय दुह-परियण-मुह-संकोयणु।। पावेविणु तणु-सम णिट्ठवण
हरियंदणु चल-चामर-पवणइँ।। णियमणि णिब्मरु सोउ करंतउ रुअइ सपरियणु ससुहि सकतउ ।। हा-हा सक्कवम्म महि-सामिय
मय-मंथर सिंधुरगइ-गामिय।। दूसह-समर-सहास धुरंधर
दारिय करि कंठीरव कंधर।। हा-हा विरइय सुहियण-वच्छल
णायणिहेलण दूरुज्झियच्छल।। हा-हा हयरिउ माण-परिग्गह
सीलाहरण-विहूसिय-विग्गह।। हा-हा पुरिस-रयण पालिय-पय
णिहिल णरिंद-विंद सेविय पय।। पइँ विणु कह हयवउ साहारमि
दुक्ख-महाणइ-णाहहो तारमि।। इय जा विरयइ सोउ णरेसरु ता जंपइ बुहु कोवि मईसरु।।
घत्ता- भो-भो धरणीसर समरधुर-धरणीधर सररुह-सुमुहु।।
__णिसुणिज्जउ देव पसाउ करि भणमि किं पि हउँ पुरउ तुहु ।। 42 ।।
3/3 राजा रविकीर्ति द्वारा प्रेषित राजा शक्रवर्मा के वैराग्य सम्बन्धी सन्देश को
पाकर राजा हयसेन शोक सागर में डूब जाता हैउस वचोहर (सन्देशवाहक) का कथन सुनकर महीश (राजा) हयसेन का सम्पूर्ण शरीर काँप उठा। वह अपना शिर धुनने लगा, उसने नेत्रों को निमीलित कर लिया। रदन (दाँत) बाँधकर वह भूमि पर लौटने लगा। फिर नेत्र बन्द किये हुए ही उठा और अपने दुःख से उसने अपने परिजनों के मुख को संकुचित (रुआँसा) कर दिया। पुनः शरीर की थकावट को शान्त करने वाले हरे चन्दन तथा हिलते हुए चामरों की पवन से कुछ स्वस्थ होकर वह उठ बैठा और अपने मन में भरपूर शोक करता हुआ, अपने परिजनों, मित्रों एवं रानियों सहित हाय-हाय कर रुदन करने लगा और बोलने लगा कि हे शक्रवर्मा, मही के हे स्वामिन्, मद से मंथर गज के समान गति वाले, दुस्सह-युद्ध के भार को सहर्ष धारण करने वाले, शत्रुरूपी हाथी को विदीर्ण करने के लिये पराक्रमी सिंह के समान ग्रीवा वाले, मित्रजनों के प्रति वात्सल्य गुण वाले, सभी के प्रति न्याय-नीति रखने वाले, छल-कपट को दूर से ही छोड़ने वाले, मान-परिग्रह रूपी शत्रु के त्यागी, शीलाभरण से विभूषित विग्रह वाले, हे प्रतिज्ञा पालक, हे पुरुषरत्न, समस्त नरेन्द्र-वृन्दों से सेवित हे राजन्, हतवय (वृद्धावस्था) में आपके बिना मैं अपने को कैसे संभालूँगा। दुखरूपी महानदीनाथ (समुद्र) को कैसे पार करूँगा? इस प्रकार राजा हयसेन जब शोक कर रहे थे तभी कोई विवेकशील सभासद्-विद्वान् बोला
घत्ता- हे-हे समरधुर-धरणीश्वर, हे कमल पुष्प के समान मुखवाले धरणीधर, हे देव, कृपा कर सुनिए। मैं आपके
सामने कुछ कहना चाहता हूँ। (42)
पासणाहचरिउ :: 49