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तीया संधी
3/1 Once upon a time a messanger of a King comes to the court of King Hayasena. An interesting description of traits (characteristics) of a King's messanger (Embassador).
घता- एत्थंतरि पत्तउ दूउ तहिँ जहिँ हयसेणु णराहिवइ।
___ सामंत-मंतिगण-परियरिउ रिउकुरंगहरिणाहिवइ ।। छ।। जो छणससि व समग्ग कलालउ विउस-चित्त चोरणु कुसुमालउ।। सुरवइगुरु व महामइवंतउ
सोमु सुदंसणु णयसिरिवंतउ।। महकइविरइय कव्व-रसिल्लउ
सुंदरु सयल-देसभासिल्लउ।। दप्पुब्मड पडिभटदलवट्टणु
संघडियारिसमूह-विहट्टणु।। जाइवंतु कुललच्छि समिद्धउ
मुणिय परंतरंगु पसिद्धउ।। कंतिवंतु पहु-कज्ज-कयायरु
सयलामल-गुणमणि-रयणायरु।। सपरकज्जपवियार-वियक्खणु
जणमणहरु महुरगिरु सलक्खणु।। गलियालसु पत्थाव-पयंपिरु
पहुपसाय-भूसियउ अकंपिरु।। विविहंबरपाहुड मंडिय करु
बंभवलाहिहाणु कुलसंकरु।। दियवरु णिव हयसेणाएसिउ
दंडपाणि पडिहारे पेसिउ।। णिव भू-भंग-भणिय विट्ठरि ठिउ सवइ-वयण-जंपण-उक्कंठिउ।। घत्ता- सो पुच्छिउ राएँ वज्जरइ कुसलु देव सयलहँ जणहँ।
अणवरउ तुज्झु गयमल-चलण-कमलोवासण-कय मणहँ ।। 40।।
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अन्य किसी एक दिन राजा हयसेन की राज्यसभा में एक सन्देशवाहक (राजदूत) आता है :
राजदूत के लक्षणों का रोचक वर्णनइसके अनन्तर मृग रूपी शत्रु के लिए सिंह के समान राजा हयसेन जब सामन्त एवं मन्त्रिगण सहित राज-दरबार में (सभामण्डप में) बैठे थे, तभी वहाँ एक दूत आ पहुँचा। वह दूत पूर्णमासी के चन्द्रमा के समान समग्र कलाओं का घर था। विद्वानों के चित्त को चुराने के लिये वसन्त-ऋतु के समान, सुरपति-गुरु (बृहस्पति) के समान महामति युक्त, सोम (चन्द्र) के समान सुदर्शन तथा नय रूपी श्री से युक्त था। वह दूत महाकवियों द्वारा प्रणीत काव्यों का रसिक एवं रूप-सौन्दर्य से युक्त था।
वह समस्त देश्य-भाषाओं का बोलने वाला था तथा दर्प से उद्भट प्रतिभटदलों को ललकार कर पीछे लौटने के लिये बाध्य कर देने वाला, सुसंघटित अरिसमूह का विघातक, उत्तम जातिवाला, कुल-लक्ष्मी से समृद्ध, पर के अंतरंग (मन) की बात को समझने वाला, सुप्रसिद्ध, उत्तम कांति युक्त, प्रभु (स्वामी) के कार्य के प्रति आदर भाव रखने वाला, रत्नाकर के रत्न-समूह के समान ही वह (दूत) अपरिमित निर्दोष गुणों का आकर (खान), स्व-पर के कार्य के विचार में विचक्षण, जन-मन को हरनेवाला, मधुरवाणी बोलने वाला, उत्तम लक्षणों से युक्त, आलस्य रहित और प्रस्ताव (प्रकरण की बात) को सार्थक रूप में प्रस्तुत करने वाला, प्रभु-प्रसाद से भूषित, अकम्प (निर्भय), एवं विविध (बहुमूल्य) वस्त्रों की प्राभृत (भेंट) से विभूषित कर वाले, कुलिस (बजदण्ड) से युक्त हस्तवाले, तथा अपने कुल को सुखी बनाने वाले उस दूत का नाम ब्रह्मबल था। राजा हयसेन के आदेश से वह द्विजवर (ब्राह्मण)-दूत, दंडहस्त वाले द्वारपाल के द्वारा राज्य-सभा में भेजा दिया गया और राजा के भ्रूभंग के इशारे से आसन पर बैठ गया तथा अपने स्वामीराजा के वचन-सन्देश को सुनाने हेतु राजा हयसेन के आदेश की प्रतीक्षा करने लगा। घत्ता- राजा हयसेन द्वारा पूछे जाने पर वह दूत बोला कि हे देव, आपके निर्मल चरण-कमलों की अनवरत उपासना
में दत्तचित्त. वहाँ के निवासियों की सभी प्रकार से कुशलता है। (40)
पासणाहचरिउ :: 47