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अमयासणेहँ सहुँ रमइ जाम अत्थाणंतरे संठिउ णरेहि सेहर-मणियर-दीविय-दिसेहि आयहिँ णिल्लग्गहँ कारणेहि पहु पय दंसण उक्कंठिएहिँ विदलिय पस्माण महीहरेहि कण्णाड-लाड-खस-गुज्जरेहिँ बंगंग-कलिंग-सुमागहेहिँ चंदिल्ल-चोड-चउहाणएहि रट्ठउड-गउड-भायाणएहि एयहि णाणाविह णरवरेहि
जिणु जणिय राउ हयसेणु ताम।। मणिमय-कंकण-मंडिय-करेहि।। णिरसिय रिउ-गव्व महा-विसेहिाँ। णिज्जिय अणेय महारणेहि। णिय-णिय पवरासण संठिएहिाँ। मउलिय कर विविह महीहरेहिाँ। मालव-मरहट्ठय-वज्जरेहि।। पावइय-टक्क-कच्छावहेहि। सेंधव-जालंधर-हूणएहिाँ। कलचुरिय-हाण-हरियाणएहिाँ। करवाल-लया-भूसिय-करेहि।।
घत्ता- सिरिहर वयणेहिँ वरणयणेहिँ सोहइ महिवइ केम।
णट्टल सरिसेहिँ कयहरिसे हिँ अमरहि सयमहु जेम।। 39 ।।
करते थे, तब-तब राजा हयसेन अनुराग से भर उठते थे।
अन्य किसी एक दिन मणि-मण्डित-कंकणों से सुशोभित हाथों वाले, मणि-जटित मुकटों की किरणों से दिशाओंविदिशाओं को दीप्त करने वाले तथा रिपुओं के गर्व रूपी महाविष को दूर करने वाले राजा हयसेन जब अपने सभासदों के साथ राज्य सभा में विराजमान थे, तभी शत्रुओं के अहंकार रूपी पर्वत को चूर-चूर कर देने वाले, तथा अनेक महारणों के विजेता-कर्नाटक, लाट, खस, गुर्जर, मालव, महाराष्ट्र, बज्जर, (बजीरिस्तान) अंग, बंग, कलिंग, मगध, पार्वतिक (हिमालय की तराई वाले) टक्क, कच्छ (कछवाहे), चंदिल्ल (चेदि या चन्देरी), चोल, चौहान, सैंधव, जालन्धर, हूण, राठौड (राष्ट्रकूट) गउड, भादानक, कलचुरि, हाण, हरियाणा (आदि) के खड्ग-लता से विभूषित हाथों वाले विनम्र मस्तक तथा करबद्ध होकर नरेश-गण उन (राजा हयसेन) के दर्शनों के लिए उत्सुक होकर तथा अपनी घनिष्ठता व्यक्त करने हेतु उनकी राज्य-सभा में पधारे और अपने-अपने योग्य आसनों पर बैठे।
घत्ता- कवि श्रीधर के कथनानुसार उत्तम नेत्र वाले राजा हयसेन आगत नरेशों के मध्य किस प्रकार सुशोभित
हो रहे थे? ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार कि हर्षित मन वाले देवों से घिरा हुआ शतमख (इन्द्र) एवं सज्जनोत्तम पुरुषों से घिरा हुआ साहू नट्टल सुशोभित होता है। (39)
पासणाहचरिउ :: 45