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Colophon इय सिरि पासचरित्तं रइयं बुह सिरिहरेण गुण भरियं । अणुमण्णियं मणोज्जं णट्टल णामेण भव्वेण ।। छ।।
Blessings to Sāhu Nattala, the inspirer फणि-णर-सुर-खयराणं पहुणो हयसेण वंस दिणमणणो। सिस कीलण वण्णणए वीओ संधि परिसमत्तो।। छ।। ।। संधि 2|| छ।।
पुष्पिका इस प्रकार बुध श्रीधर ने गुणों से भरपूर ऐसे पार्श्वचरित की रचना की, जिसकी मनोज्ञ अनुमोदना साहू नट्टल ने की है। उसमें नाग, मनुष्य, देव, एवं खेचरों (विद्याधरों) के अधिपति राजा हयसेन के वंश के लिये दिनमणि (सूर्य) के समान बालक-पार्श्व की बाल-लीलाओं का वर्णन करने वाली दूसरी सन्धि समाप्त हुई।
आश्रयदाता के लिये कवि का आशीर्वाद जिसके सुन्दर एंव सुस्निग्ध पुंघराले केश लहराते रहते हैं और जिसने समस्त निर्दोष कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, जिसने अपने समस्त शत्रुजनों के मान का मर्दन कर पृथिवीतल पर अपनी सत्कीर्ति का विस्तार किया है, जिसने अपने कुल की प्राप्तियों एवं उपलब्धियों के सुफलों को प्रकाशित कर उनके गौरव के कारण अपने वक्षस्थल को तान रखा है, ऐसे श्रीमन्त तथा निरन्तर ही पाप-कार्यों की अवहेलना करने में सफल श्रीमान् नट्टल साहू चिरकाल तक जीवित रहें।
46:: पासणाहचरिउ