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हुववह-वारिमुद्द-परिथंभइ दूसह वूह-जुद्धयं ।। णारी-पुरिस कढिण-सिलवेहणु कोमल-कव्व सिद्धिया। घंटा पंचवण्ण परिभवणइँ सउणइँ सेल्ल सुद्धिया।। असि-कुंतासि घेणु गय-चक्क्इ वर सूली णिबंधयं । चित्तोवल-सुवण्ण तरु सुत्तहँ कम्महँ मल्लजुद्धयं ।। चिंता-मुट्ठि लूअ ठियभोयणु णवरस जुत्तु पेक्खणं। किसि-वाणिज्जु काल-परिवंचणु विसहरमंतलक्खणं ।। मंदल-टिविल-ताल-कंसालय-भमा-भेरि-झल्लरी।। काहल-करड-कंबु-वर डमरु डवक्क हुडुक्क-टट्टरी।। बहुविहु इंदयालु दलछेयणु देसिय-भास जंपणं।
कलहँ सुआरकम्मु जणरंजणु परसत्थावहारणं ।। घत्ता- छंदालंकारु-सद्दवियारु-णिग्घंटोसहिसार। पर पुरसंचारु रइवित्थारु सयललोयवावारु।। 38 ||
2/18 Almost all the powerful kings of the country like Karnataka, Harayana, Magadh, Anga. Champa etc. came at the court of Emperor Hayasena to pay respect and congratulate
him on the festive occasion. आवज्जिवि सिरितित्थयरणाम
भव्वयणविंद पविइण्ण कामु।। अणुहुत्त तीस वच्छर सुहोहु
णियपुण्णपयडि णिहणिय दुहोहु।। दुःसह-रण-व्यूह-संरचना, युद्धकला, नाड़ी-परीक्षा, कठिन शिलाओं का वेधन, कोमल काव्य की सिद्धि करना, घण्टाज्ञान, पंचवर्ण-भवनों का ज्ञान, स्वप्नफल ज्ञान, हीरा-माणिक्य आदि बहुमूल्य शैलशुद्धि का परिज्ञान, असि (कटार) कुंत, असि-धेनु (धनुष वाण) गदा, चक्र, उत्तम सूली-निबंधन, चित्रकर्म, उपल (पत्थर)-कर्म, सुवर्ण-कर्म, तरु (काष्ठ)कर्म, सूत्रकर्म, मल्लयुद्ध (इन सब कर्मों का ज्ञान) तथा चिंता, मुष्टि, लूता (मकड़ी) कर्म, नवरसयुक्त स्थिति-भोजन, प्रेक्षण (नाटक-दर्शन) कृषिज्ञान, वाणिज्यज्ञान, काल-परिवंचन (परिवर्तन)-ज्ञान, विषधरों के मंत्र-लक्षण का ज्ञान, वाद्यों
का ज्ञान जैसे मंदल, टिविल, (तबला), ताल, कंसाल, (डफ) भंभा, भेरी, झल्लरी, काहला, करड, कंबु (शंख), वरड (डमरु), डक्क, हुडुक्क, टट्टरी आदि वाद्यों का ज्ञान, अनेक प्रकार का इंद्रजाल-ज्ञान, दल छेदन-ज्ञान, देशी-भाषा के बोलने का ज्ञान, कलह-कर्म, सूत्रधार (सुतार) कर्म, जनरंजन-कर्म, परशस्त्रापहरण आदि सभी कर्मों का उन्हें ज्ञान था। तथाघत्ता- छंद, अलंकार, शब्द-विचार, निघंटु, औषधि-सारज्ञान (वनस्पति-विज्ञान) परपुर-संचार ज्ञान, रति-विस्तार एंव
सकल-लोकों के व्यवहार, व्यापार-प्रवृत्ति का उन्हें पूर्ण ज्ञान था। (38)
2/18 कर्नाटक, हरियाणा, मगध, अंग-चम्पा आदि 25 देशों के पराक्रमी नरेश सम्राट हयसेन के दर्शनार्थ तथा उन्हें बधाई देने हेतु उनकी राज्यसभा में आते हैंभव्यजनों के लिये मनोवांछित सुख प्रदान करने वाले, तीर्थंकर-नामकर्म के बन्धकार 30 वर्षों तक विविध सुखानुभव कर अपनी पुण्य-प्रकृति द्वारा दुःख-समूह को नष्ट करने वाले वे पार्श्व-प्रभु जब-जब देवों के साथ क्रीड़ाएँ
44 :: पासणाहचरिउ