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जं किं पि धरइ लीलए करेण हो-हल्लरु जो जोयइ भणेवि चलहार रमणि रमणीय णेहि तुह सेवए लब्मइ सोक्खरासि
तं व हरिज्जइ पविहरेण।। परियं दिज्जइ सामिउं गणेवि।। लीला संचालिय लोयणेहि। तुट्टइ दवट्टि संसार-पासि।।
घत्ता- कीलंतहो तासु णिहयसरासु च्छुडु परिगलिउ सिसुत्तु।
इय लीलए जाम दिट्ठउ ताम हयसेणे णिय पुत्तु।। 36 ||
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The figurative description of the handsomeness of the body of the child-PārŚwa.
गिरि-सरि-कुलिसंकुस कमल-पाणि झस कलस-विसालंकिउ ति-णाणि।। वइरियण विबंघण काल पासि
वरतिय मोहण सोहग्गरासि।। सरसइ मंडिय वयणारणालु
जयलच्छि पयासिह वाहु डालु।। वच्छयलु सिरीए तिलएण भालु भूसियउ अद्धचंदुव विसालु ।। णिहिलावणि णिवसइ जासु वाले णिद्दारिय वइरिययण कवाले।। जस कित्तिए धवलिउ सयल लोउ मणचिंतिउ जसु संपडइ भोउ।। पवणाहय कयलीदंड जेम
जसु जम भएण थरहरइ तेम।। जसु रूउ णिएविणु मारवीरु
लज्जइ णउ दावइणिय सरीरु।। जाते थे। जिस किसी भी वस्तु को वह बालक-पार्श्व लीलापूर्वक अपने हाथ से पकड़ लेता था, उसे पविधर (इन्द्र) भी नहीं छुड़ा पाता था। वह बालक जिसे भी देखकर हो-हो बोलता था, उसको देख-सुनकर (सभी लोग) 'स्वामी है', ऐसा मानकर उसे स्वीकार करते थे। चंचलहार से भूषित तथा चपला (बिजली) के समान चंचल नेत्रवाली रमणी (नारी)- जन भी उनकी सेवा से ऐसी सुखराशि प्राप्त करती थी, मानों उनका भव-पाश त्वरित गति से टूटने वाला ही हो। घत्ता- काम के नाशक प्रभु पार्श्व का इस प्रकार क्रीड़ा करते-करते जब शिशुत्वकाल समाप्त हो गया, तब राजा
हयसेन ने अपने पुत्र की ओर (ध्यान पूर्वक) देखा। (36)
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बालक पार्श्व के शरीर की शोभा का वर्णनवे बालक-पार्श्व पर्वत, नदी, कुलिश (वज) अंकुश तथा कमल से चिन्हित हस्तवाले, झष (मीन), कलश, विस (कमलनाल) से अलंकृत तथा मति, श्रुति, अवधि रूप तीन ज्ञानों के धारी थे। वे बैरी-जन को बाँधने के लिये कालपाश थे। उत्तम स्त्रियों को मोहित करने के लिये सौभाग्य-राशि (पुण्यराशि कामदेव) के समान थे, सरस्वती से मण्डित मुखकमल वाले थे, विजय लक्ष्मी से प्रसाधित भुजा (शाखा) वाले थे, उनका वक्षस्थल श्रीवत्स से सुशोभित था, तिलक से भूषित उनका अर्धचंद्र के समान विशाल भाल (मस्तिष्क) था, बैरीजनों के कपालों को विदीर्ण करने में सक्षम जिन-पार्श्व के आसपास समस्त पृथिवी का निवास था। जिनकी कीर्ति से समस्त लोक धवलित था तथा जिन्हें मनचिन्तित भोग सहज प्राप्त थे।
जिस प्रकार कदलीदण्ड पवन के बेग से फरफराता रहता है, ठीक उसी प्रकार उनके भय से यमराज भी निरन्तर काँपता रहता था, जिनके रूप को देखकर कामवीर लज्जित हो उठता था, इसीलिये वह अपना शरीर किसी को
42 :: पासणाहचरिउ