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लक्खियउ कोवि
महिहर थिरो वि।। मुच्छेवि झडत्ति
णिवडिउ धरित्ति।। कोवि कोमलेण
कुंकुम जलेण।। मणिमउ समग्गु
सिंचइ धरग्गु।। कवि कुसुम पयरु
परिभमिय भमरु।। विरयइ मणोज्जु
जण जणिय चोज्जु।। घत्ता- इय उच्छव तेत्थु विरएवि जेत्थु णिवसइ जिणु गुणगेहु।
गउ जणवउ जाम वड्ढइ ताम सिसुण सुअणहँ णेहु।। 34 ।।
2/14 Various amusing funs and sports of the little baby (Pārswa). अमियमउत्थणु जणणिहे पिबंतु अंगुट्ठउ वयणंतरि घिवंतु ।। मणि जिगि-जिगंतु गेंडुउ छिवंतु करसररुहेण थणयलु धिवंतु।। खलियक्खर वयणिहिँ वज्जरंतु रंगंतु बंधुयण मणु हरंतु।। परिवारंगलि-लग्गउ सरंत
तणु कंति पसर जलणिहि तरंतु।। विभउ जणंतु उद्दीहवंतु
जहि रुच्चइ तहि णिच्चु जि रवंतु।। बहु जंप णयण-मणु विद्दवंतु कयरवेरि-बेरि सिरि पउ ठवंतु।। आणंदु जणण-जणणिहु करंतु जं पेक्खइ तं करयलु धरंतु ।।
मूर्च्छित होकर भूमि पर गिर-पड़ रहा था, तो कोई-कोई दर्शनोत्सुक सुकोमल कुंकुम के जल से समग्र मणिमय ६ राग्र का सिंचन कर रहा था, तो कोई-कोई भ्रमरयुक्त सुगन्धित फूलों की माला रचकर मनोज्ञ जनों को आश्चर्यचकित कर रहे थे।
घत्ता- इस प्रकार गुणों के निवास-स्थल वे जिनेन्द्र-शिशु जहाँ विराजमान थे, वहाँ पर पूरा जन-समूह
र उत्सव किया। वह बालक पार्श्व भी उसी प्रकार बढने लगा. जिस प्रकार कि सज्जनों का स्नेह । (34)
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प्रभु पार्व की बाल-लीलाएँबाल्यावस्था में प्रभु पार्श्व माता के अमृत मय स्तनों का पान करते हुए, अथवा मुख में अमृतमय अंगुष्ठ को पीते हुए, अथवा एक हाथ से मणियों से जगमगाती गेंद को छूते हुए, तथा दूसरे हस्तकमल से स्तनतल (चूचुक) को पकड़ते हुए, स्खलित अक्षरों से वचन बोलते हुए तथा भूमि पर रेंगते हुए वे शिशु-पार्श्व बंधुजनों के मन का हरण करते रहते थे। परिवार जनों की अंगुलि पकड़कर वे लड़खड़ाते हुए चलते थे। उनके शरीर की कान्ति का विस्तार इस प्रकार बढ़ रहा था मानों वे समुद्र को ही तैर रहे हों। प्रभु बालक खड़े होकर सभी के मन में विस्मय उत्पन्न कर देते थे। उन्हें जो-जो रुचिकर लगता, नित्य वही-वही बोलते रहते थे।
अधिक तुतले-बोल बोलकर जनों के नेत्र एवं मन को विद्रिवित करते रहते थे। बार-बार सिर पर पैर रखकर माता-पिता को आनन्दित करते रहते और जिसको भी देखते थे, उसीका हाथ पकड़ लेते थे। वे उत्तम समचतुरस्र
40 :: पासणाहचरिउ