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The Gods (Suras) with the ocean of human beings celebrate the birth-festivities in the palace of Hayasen.
जय जय भ महि सिरु ठवंतु पहे पडिखलंतु
हरिसे हसंतु गायण रखे हिं
कय तोरणेहिं
पयडिय गुणा विंदई धण
पूरंतु दिसंतु
भिरंतु
भव दुह-धुणंतु णच्चति कावि पउरवर णारि
जणमण हरेण
पेल्लइ जोहु कावि फुल्लमाल
अल्लवइ बाल
कामिणि कडक्ख
सेवा कुणंतु ।। विणयं णवंतु ।।
महिदर मलंतु ।।
पविहिय वसंतु ।।
तरु पल्लवेहि।। मणचोरणेहिं । ।
वंदीयणाहँ ।।
सरहस मणेण ।।
सुआ णत्तु लिंतु ।। सु वित्थरंतु ।।
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गायंति कावि ।।
जण दिण्ण मारि ।। घणथण हरेण ।।
ण गणइ विरोहु ||
महुअर वमाल ।।
कासु वि रसाल । | विक्खेव लक्ख ||
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देवों एवं मनुष्यों ने हयसेन के राजभवन में जाकर जन्मोत्सव मनाया
सभी लोग जय-जयकार कर रहे थे। (जिनेन्द्र की) सेवा करते हुए और पृथिवी पर अपना सिर टेकते हुए, वे सभी विनय पूर्वक माता को नमस्कार कर रहे थे। कोई-कोई पथ में स्खलित हो रहे थे, मही को रौंद रहे थे और हर्ष पूर्वक हँस रहे थे मानों वसंत ऋतु के आनंद को ही प्रगट कर रहे हों।
कहीं-कहीं संगीत के शब्दों द्वारा और कहीं-कहीं तरु के पल्लवों से मन को चुराने वाले तोरण बनाये जा रहे थे तो कहीं-कहीं गुणों को प्रकट करने वाले बन्दी - जनों को हर्षित मन से धन का दान देकर उनकी आशाओं को तृप्त किया जा रहा था। नारियाँ विनम्रभाव से शिशु - जिनेन्द्र की बलैयाँ लेती हुई, उसका मन में स्मरण करती हुई, उसके यश का विस्तार करती हुई तथा कोई-कोई पौरांगनाएँ सभी के दुखों के नष्ट होने की भावना करती हुई और कहींकहीं लोगों में काम-विकार उत्पन्न करने में सक्षम सुन्दर नारियाँ नृत्य करती हुई मंगल गीत गा रही थीं ।
जन-मन का हरण करने वाली कोई-कोई घनस्तनी भीड़ की परवाह किये बिना ही निर्विरोध घुसी जा रही थी, तो कोई नारी भ्रमरों से युक्त पुष्पमाल लिये हुए जा रही थी, तो कोई-कोई रसयुक्त मधुर वाणी से बालक को दुलरा रही थी ।
कामिनियों के कटाक्ष-विक्षेपों से लक्षित होकर कोई-कोई पुरुष पर्वत के समान स्थिर होने पर भी शीघ्र ही
पासणाहचरिउ :: 39