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________________ 5 10 15 2/13 The Gods (Suras) with the ocean of human beings celebrate the birth-festivities in the palace of Hayasen. जय जय भ महि सिरु ठवंतु पहे पडिखलंतु हरिसे हसंतु गायण रखे हिं कय तोरणेहिं पयडिय गुणा विंदई धण पूरंतु दिसंतु भिरंतु भव दुह-धुणंतु णच्चति कावि पउरवर णारि जणमण हरेण पेल्लइ जोहु कावि फुल्लमाल अल्लवइ बाल कामिणि कडक्ख सेवा कुणंतु ।। विणयं णवंतु ।। महिदर मलंतु ।। पविहिय वसंतु ।। तरु पल्लवेहि।। मणचोरणेहिं । । वंदीयणाहँ ।। सरहस मणेण ।। सुआ णत्तु लिंतु ।। सु वित्थरंतु ।। || गायंति कावि ।। जण दिण्ण मारि ।। घणथण हरेण ।। ण गणइ विरोहु || महुअर वमाल ।। कासु वि रसाल । | विक्खेव लक्ख || 2/13 देवों एवं मनुष्यों ने हयसेन के राजभवन में जाकर जन्मोत्सव मनाया सभी लोग जय-जयकार कर रहे थे। (जिनेन्द्र की) सेवा करते हुए और पृथिवी पर अपना सिर टेकते हुए, वे सभी विनय पूर्वक माता को नमस्कार कर रहे थे। कोई-कोई पथ में स्खलित हो रहे थे, मही को रौंद रहे थे और हर्ष पूर्वक हँस रहे थे मानों वसंत ऋतु के आनंद को ही प्रगट कर रहे हों। कहीं-कहीं संगीत के शब्दों द्वारा और कहीं-कहीं तरु के पल्लवों से मन को चुराने वाले तोरण बनाये जा रहे थे तो कहीं-कहीं गुणों को प्रकट करने वाले बन्दी - जनों को हर्षित मन से धन का दान देकर उनकी आशाओं को तृप्त किया जा रहा था। नारियाँ विनम्रभाव से शिशु - जिनेन्द्र की बलैयाँ लेती हुई, उसका मन में स्मरण करती हुई, उसके यश का विस्तार करती हुई तथा कोई-कोई पौरांगनाएँ सभी के दुखों के नष्ट होने की भावना करती हुई और कहींकहीं लोगों में काम-विकार उत्पन्न करने में सक्षम सुन्दर नारियाँ नृत्य करती हुई मंगल गीत गा रही थीं । जन-मन का हरण करने वाली कोई-कोई घनस्तनी भीड़ की परवाह किये बिना ही निर्विरोध घुसी जा रही थी, तो कोई नारी भ्रमरों से युक्त पुष्पमाल लिये हुए जा रही थी, तो कोई-कोई रसयुक्त मधुर वाणी से बालक को दुलरा रही थी । कामिनियों के कटाक्ष-विक्षेपों से लक्षित होकर कोई-कोई पुरुष पर्वत के समान स्थिर होने पर भी शीघ्र ही पासणाहचरिउ :: 39
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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