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सकला कलाउ किं छण ससंकु अइरु अवंतु किं कामएउ दूसह पयाउ किं भुवण भाणु गुणरयण णिउत्तउ किं समुदु जणमणहरु किं सोहग्ग-पुंजु सिरिवंतउ किं कोमल मुणालु अइ थिरु किं सुरगिरि गरुअकाउ वालु वि अवाल लीला गइल्लु आलेंगिवि चुंबिवि विउल-भालि
णं ण सकलंकु ससंकु वंकु।। णं ण पसुवइणा णिहय तेउ।। णं जलहर संछण्ण भाणु।। णं ण वडवासिहिणा रउद्दु।। णं ण णारीयणु चित्त मंजु।। णं ण खरयहरु कंटय-करालु ।। णं ण णिच्चलु णिद्गुर सहाउ।। सुरसुंदरि मणरंजण छइल्लु ।। छुडु सण्णिहियउ अंकए विसालि ।।
घत्ता- एत्थंतरि लोउ वियलिउ सोउ जिण जम्मुच्छव कालि।
मंदिरे संपत्तु वियसिय वत्तु णाणा तूर रवालि ।। 33 ।।
नहीं हो सकता (क्योंकि वह चन्द्र तो कलंक सहित तथा वक्र है)। यह बालक अत्यन्त रूपवान् है, अतः क्या यह साक्षात् कामदेव ही है? नहीं-नहीं, वह तो पशुपति (शंकर) नाथ द्वारा (पहिले ही) नष्ट कर दिया गया है (अतः यह कामदेव भी नहीं हो सकता)। यह बालक दुःसह प्रतापवाला है, अतः क्या यह संसार के लिये नव-सूर्य के रूप में ही अवतरित हुआ है, किन्तु नहीं-नहीं, वह भुवन-सूर्य तो जलधर-मेघों द्वारा प्रच्छन्न कर दिया जाता है।
यह शिशु-जिनेन्द्र गुण रूपी रत्नों से परिपूर्ण है, तो क्या वह समुद्र है? किन्तु नहीं-नहीं, यह बालक तो समुद्र हो ही नहीं सकता, क्योंकि वह (समुद्र) तो वडवानल के कारण रौद्र रूपधारी होता है। यह बालक लोगों के मनों का हरण करने वाला है, तो क्या वह सौभाग्य-पुंज-समूह ही है? नहीं-नहीं वह पुंज तो केवल नारीगणों के चित्त को ही मोहित कर सकता है, सभी के लिये नहीं। यह बालक शोभायुक्त श्रीमन्त है। तो क्या वह कोमल मृणाल (कमलनाल) है? नहीं नहीं, क्योंकि वह (कमल-नाल) तो खुरखुरा तथा तीक्ष्ण काँटे वाला है। वह बालक अत्यन्त स्थिर-स्वभाव वाला है। तो क्या वह गुरु काय वाला सुमेरु-पर्वत ही है? नहींनहीं, वह पर्वत तो निश्चल एवं निष्ठुर (कर्कश) स्वभाव वाला है। ___ वह बालक होते हुए भी बालक जैसा नहीं है क्योंकि वह तो बड़ों-बड़ों के समान लीला पूर्वक गतिवाला है, सुर-सुन्दरी के मन का रंजन करने वाला है और षट्पद (भ्रमर) के समान है। माता ने उसका आलिंगन कर उसके विशाल भाल का चुम्बन करके उसे शीघ्र ही अपनी गोद में छिपा लिया।
घत्ता- इसी बीच नाना प्रकार के मधुर तूर आदि वाद्यों के संगीत के मध्य विगत शोक होकर (जनपद का-) जन
समह जिनेन्द्र के जन्मोत्सव-काल में राजमहल में आया। (33)
38 :: पासणाहचरिउ