________________
जय धम्म-धम्म-मग्गाणुवट्टि जय कंथ परिक्खिय कंथ-सत्त। जय मल्लि-मल्लि पुज्जिय-पहाण जय णमिणमियामर-खयरविंद जय पास जसाहय हीर-हास
जय संति पाव-महि मइय वट्टि।। जय अर अरिहंत-महंत सत्त।। जय मुणिसुव्वय सुव्वय-णिहाण।। जय णेमि णयण णिहयारविंद।। जय जयहि वीर परिहरिय-हास।।
15
घत्ता- इय णाण-दिवायर गुणरयणायर वित्थरंतु महु मइ-पवर।
जिणकब्बु कुणंतहो दुरिउ-हणंतहो सुर-कुरंग-मारण-सवर।। 1।।
1/2 Poet BUDHA SRIDHARA, the author of this Epic introduces himself and after composing his Epic named after CANDAPPAHA-CARIU reaches DHILLI-(Delhi) PATTAŅA. विरएवि चंदप्पहचरिउ चारु
चिर चरिय-कम्म-दुक्खावहारु।। विहरते. कोऊहल-वसेण
परिहच्छिय वाएसरि-रसेण।। सिरि अयरवालकुल-संभवेण
जणणी वील्हा-गब्मुभवेण।। अणवरय विणय-पणयारुहेण
कइणा बुह गोल्हु तणूरुहेण।।
अलोक) को प्रकाश (ज्ञान) से पूर्ण करने वाले अथवा प्रजाजनों की आशा को पूर्ण करने वाले एवं अपने चरणों से समस्त दिशाओं की आशा को पूर्ण करने वाले अनन्तनाथ की जय हो। धर्म-मार्ग की अनुवृत्ति करने वाले (अर्थात् धर्म-मार्गप्रवर्तक) धर्मनाथ की जय हो। पापों की भूमि की वाट को मथने वाले (मर्दन करने वाले) शान्तिनाथ की जय हो।
कुन्थु आदि जीवों की रक्षा करने वाले (अथवा कुन्थु आदि भी द्वीन्द्रिय जीव हैं, ऐसी परीक्षा करने वाले) कुन्थुनाथ की जय हो। अरि (मोहनीय कर्म) का नाश करने वाले महान् सत्व (बल) वाले अरहनाथ भगवान् की जय हो। मल्लिका (बेला-चमेली) पुष्पों से पूजित प्रधान (श्री) मल्लिनाथ की जय हो। उत्तम व्रतों के निधान (खजाने) स्वरूप
नाथ की जय हो। अमर (देव) और खचर (विद्याधर) वन्द (समह) से नमस्कत नमिनाथ की जय हो। अपने नेत्रों से अरविंद (कमल) की शोभा को भी जीत लेने वाले नेमिनाथ की जय हो। अपने (प्रशस्त) यश के द्वारा हीरा के हास्य (कान्ति) को आहत (नीचा) करने वाले पार्श्वनाथ की जय हो। हास्य (परनिंदा) को छोड़ने वाले वीरनाथ की जय हो, जय हो। घत्ता- ऐसे ज्ञान-दिवाकर (सूर्य), गुण रूपी रत्नों के आकर (भंडार), स्मर (कामदेव) रूपी मृगों को मारने के लिए
शबर (भिल्ल) के समान तथा पापों को हरने वाले वे जिनेन्द्र-गण प्रस्तुत जिनेन्द्र-काव्य (पासणाहचरिउ) के प्रणयन-हेतु मेरी बुद्धि में प्रवर विस्तार करें। (1)
1/2 कवि बुध श्रीधर यमुना नदी पारकर दिल्ली (वर्तमान दिल्ली) पट्टन में पहुँचता हैचिरकाल से आचरित (संचित) कर्मों के दुःखों का अपहरण करने वाले सुन्दर चन्द्रप्रभ चरित की रचना कर कौतूहलवश विहार (देशाटन) करते हुए, वागेश्वरी (सरस्वती) के प्रसाद-रस से सभी रसिक जनों के मन को जीत लेने वाले श्री अग्रवाल कुलोत्पन्न बील्हा' नाम की माता के गर्भ से जन्म लेने वाले, अनवरत (निरन्तर) विनय एवं
2:: पासणाहचरिउ