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कइवर बुह सिरिहर गुंफिय पासणाहचरिउ पढमा संधी
1/1 Victory to Lord Pārswa, the Hero of the Epic. घत्ता- पूरिय मुअणासहो पाव-पणासहो णिरुवम गुणमणिगण भरिउ।
तोडिय भवपासहो पणविवि पासहो पुणु पयडमि तासु जि चरिउ ।। छ।।
जय रिसह परीसह-सहणसील जय संभव भव-भंजण समत्थ जय सुमइ समज्जिय सुमइ-पोम जय-जय सुपासु वसु पास णास जय सुविहि-सुविहि-पयडण-पवीण जय सेय-सेय लच्छी-णिवास जय विमल-विमल-केवलपयास
जय अजिय परज्जिय पर दुसील।। जय संवर-णिव-णंदण समत्थ।। जय पउमप्पह पह-पहय-पोम।। जय चंदप्पह-पहणिय स-णास।। जय सीयल पर-मय सप्प-वीण।। जय वासुपुज्ज परिहरिय-वास।। जय-जय अणंत पूरिय-पयास।।
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पार्व की मंगल-स्तुतिघत्ता— भुवन (तीन लोकों के जीवों) की आशा (अभिलाषा) को पूर्ण करनेवाले, पापों के प्रणाशक, भव की पाश
(मोह) को तोड़ने वाले श्री पार्श्वप्रभु को प्रणाम कर मैं (बुध श्रीधर) उनके अनुपम गुण रूपी मणिगण (रत्नसमूह) से भरे हुए चरित्र को प्रकट करता हूँ।। छ।।
नईतियों
परीषहों को सहन करने के स्वभाव वाले ऋषभदेव की जय हो। दुष्ट स्वभाव वाले तथा (संसार में भ्रमण कराने वाले) पर-(कर्मों) को जीतने वाले अजितनाथ की जय हो। भव (पंचपरावर्तन के कारणभूत मोह, राग-द्वेष) के चूर्ण करने में समर्थ सम्भवनाथ की जय हो। संवर राजा के समर्थ पुत्र अभिनन्दननाथ की जय हो। ___ सुमति (केवलज्ञान) रूपी पद्मा (लक्ष्मी) को अर्जित करनेवाले सुमतिनाथ की जय हो। (अपनी-) प्रभा से पद्मों (रक्ताभ-कमलों) को प्रहत करने वाले (नीचा दिखाने वाले) पद्मप्रभ की जय हो। अपनी मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले अथवा ज्ञानियों की आशा-पाश का हनन (नष्ट पूर्ण) करने वाले चन्द्रप्रभ की जय हो। सुविधि (-मोक्षमार्ग की पद्धति) को प्रकट करने में प्रवीण सुचिधिनाथ (पुष्पदन्त) की जय हो। परमत रूपी सो को नष्ट करने के लिए गरुड-वीण के समान, शीतलनाथ की जय हो। श्रेय (पंचकल्याणक रूपी)-लक्ष्मी के निवासस्थान श्रेयांसनाथ की जय हो। वास (पस्मत रूपी दुर्गन्ध अथवा संसार के निवास) का परिहार (दूर) करनेवाले वासुपूज्य की जय हो।
विमल (द्रव्य-कर्म रूपी मल रहित) केवलज्ञान का प्रकाश करने वाले विमलनाथ की जय हो। अनन्त (लोक
पासणाहचरिउ :: 1