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After manyfold heartening dialogues, Budha Sridhara was told by Naṭṭala regarding his noble deeds like construction of huge, sky scraping, beautyfull, artistically designed temple complex of Lord Adinatha, the first Tirthankara, at Dhilli - Pattana. Nattala, very humbly requests the poet to compose, for his sake, the life account of Pasaṇāha.
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काराविवि णाहेयहो णिकेउ पइँ पुणु पइट्ठ पविरइय जेम विरयावहि ता संभवइ सोक्खु सिसिरयर-बिंब णिय जणण णामु तुज्झवि पसरइ जय जसु रसंतु तं णिसुणिवि णट्टलु भणइ साहु भणु खंड-रसायणु सुह-पयासु एत्थंतरि सिरिहरु वुत्तु तेण भो तुहु महु पयडिय णेह-भाउ तुहुँ महु जस- सरसीरुह-सुभाणु पइँ होंतएण पासहो चरित्तु तं णिसुणिवि पिसुणिउ कविवरेण
पविइण्णु पंचवण्णं सुकेउ ।। पासहो चरितु जइ पुणुवि तेम ।। कालंतरेण पुणु कम्म- मोक्खु ।। पइँ होइ चडाविउ चंद धामु ।। दस- दिसहि सयल असहणह संतु ।। सइवाली-पिययम तणउँ णाहु ।। रुच्चइ ण कासु-हय-तणु-पयासु । । णट्टलु णामेण मणोहरेण । । तुहुँ परमहु परियाणिय सहाउ ।। तुहुँ महु भावहि णं गुणणिहाणु ।। आयणमि पयडहि पाव- रित्तु ।। अणवरउ लद्ध सरसइ-वरेण । ।
पत्ता- विरयमि गयगावे पविमल भावे तुहवयणे पासहो चरिउ ।। परदुज्जय- णियरहिं हयगुणपयरहि घरु-पुरु णयरायरु भरिउ ।। 9 ||
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हून दिल्ली के आदिनाथ - मन्दिर निर्माणादि के सत्कार्यों का स्मरण दिलाकर कवि श्रीधर से पार्श्वचरित के प्रणयन का अनुरोध करता है
नट्टल, आपने आदिनाथ - निकेत (मन्दिर) का निर्माण कराकर तथा उस पर पंचवर्ण वाली सुन्दर सुकेतु (ध्वजा फहराकर उसकी प्रतिष्ठा कराई है। अब यदि पार्श्व के चरित की भी रचना करावें, तो उससे आपको आत्मसुख (सन्तोष) तो होगा ही, इस सत्कार्य से कालान्तर में कर्म-मोक्ष भी प्राप्त होगा। और भी, कि आपने अपने पिताजी के नाम
चन्द्रमा के धाम के समान चन्द्रप्रभ स्वामी की मूर्ति की भी स्थापना कराई है। इस कारण आपका यश जय-जयकार करता हुआ दसों दिशाओं में विस्तृत हो गया है, जो कि आपके सभी दुर्जनों के लिए असहनीय हो रहा है । "
कवि का कथन सुनकर शेफाली ( सइवाली) के प्रियतम नाथ साहू नट्टल बोले- "(हे सज्जनोत्तम, आप ही ) कहिये कि सुख का प्रकाशक रसायन-खण्ड किसे रुचिकर नहीं लगता और कामदेव को नष्ट करने वाले पार्श्व का काव्य किसे रुचिकर नहीं होगा? पुनः मनोहर नामवाले उस नट्टल ने कवि श्रीधर से कहा- "हे कविवर, आपने मेरे ऊपर बड़ा स्नेहभाव प्रकट किया है, और अब मेरे स्वभाव को भी भलीभाँति जान लिया है। आप मेरे यश रूपी कमल के लिए उत्तम भानु हो, आप तो मुझे ऐसे प्रतीत हो रहे हैं, मानों गुणों का निधान ही मूर्तरूप होकर मेरे सम्मुख उपस्थित हो गया है। आपके होते हुए मैं पार्श्व के निर्दोष चरित को सुनना चाहता हूँ । आप उसे अवश्य ही प्रकट करें (प्रकाशित करें) । "
नट्टल साहू का कथन सुनकर सरस्वती के वरदान को अनवरत रूप से उपलब्ध करने वाले कविवर श्रीधर ने कहाघत्ता- "आपके कथन से मैं पवित्र भाव पूर्वक गर्वरहित होकर पार्श्व-चरित की रचना करता हूँ । किन्तु गुण-समूह से शून्य भयानक दुर्जनों से घर, पुर, नगर, और देश भरा पड़ा है। " (9)
पासणाहचरिउ :: 11