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पुणरवि सुरवइ विट्ठरे णिविद्रु जो भवसमुद्द-तारण-समत्थु सिद्धत्थ सरिसु गुणपत्तभूउ तहो तह जह कुहरहो जलहरेण
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घत्ता- तं सुणिवि सुराहँ ललिय कराहँ हरिसु ण मायउ चित्ति । चल्लिय सविमाण अप्परिमाण णहयले रवियर दित्ति ।। 23 ।।
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Indra with the families of Gods moves towards Vāṇārasī, the birth-place of the baby (Hero).
अइराव करि सुमिरिउ मणेण । । खयकाल सलिलहर गज्जमाणु ।। कलरव ज्जावलि सोहमाणु ।। कण्णाणिल हय चमराहिमाणु ।। बहुदंतकंति भूसिय दियंतु ।। तहिं पत्ते - पत्ते णवणलिणणेत्त ।। णिव्वाणराय सीमंतिणीउ ।। चडियउ दवत्ति सोहम्मराउ ।।
पं व भविण मणिडु || अरुणमोरुहदल विमल हत्थु ।। वाणारसि हयसेणहो तणूउ ।। अहिसे करेव्वर मइभरेण । ।
ता अवसर जा सक्कंदणेण
ता पत्तु मत्तु मंदर पमाणु अविरल मुअंतु दस दिसिहि दाणु वर कच्छरिच्छमाला समाणु पडिकूल पिसुण णासण कियंतु दिए दिए सरु सरे-सरे पोम पत्त णच्चति थंति थोरत्थणीउ णं णिएवि णाउ णिम्मल सहाउ
"जो जिनेन्द्र भव-समुद्र के तारण में समर्थ हैं, लाल कमल पत्र के समान निर्मल हस्त वाले हैं, जो सिद्धार्थ (सरसों) के समान समस्त अर्थों को सिद्ध करने वाले तथा सिद्धार्थ के समान गुणों के पात्र हैं, वाणारसी में राजा हयसेन के यहाँ ऐसे ही पुत्ररत्न उत्पन्न हुए हैं। जिस प्रकार मेघ वृक्षों को स्नान कराते हैं, उसी प्रकार हे बुद्धिमान् देवगण, तुम भी वहाँ जाकर उस शिशु का अभिषेक करो। "
पत्ता- इन्द्र के इस प्रकार वचन सुनकर सुन्दर हाथ वाले उन देवगणों का हर्ष चित्त में न समाया । सूर्य किरण की दीप्ति के समान वे अपरिमित आकाश मार्ग से अपने-अपने विमानों में चढ़कर (वाणारसी नगरी की ओर) चल पड़े। (23)
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इन्द्र का देवों के परिवार के साथ वाणारसी की ओर प्रस्थान
उस अवसर पर शक्र (इन्द्र) ने अपने मन में ऐरावत हाथी का जब स्मरण किया तभी वह मन्दर प्रमाण (अर्थात् सुमेरु पर्वत के बराबर एक लक्ष योजन का), क्षयकालीन मेघ गर्जना करने वाला (जैसे क्षय प्रलयकाल में मेघ गर्जते हैं), दशों दिशाओं में मद-जल की वर्षा करते हुए ध्वनि करने के कारण ग्रीवा की आभूषण पंक्ति से शोभायमान, उत्तम नक्षत्रों की माला के समान गलमाला को धारण किये हुये, कर्णों की वायु से चामरों की वायु के अभिमान को नष्ट करने वाला, शत्रुरूप पिशुन- दुष्टों को नाश करने के लिए कृतांत (यमराज) के समान तथा दन्तों की असीम कान्ति से दिगन्त को सुशोभित करने वाला, वह मत्त ऐरावत गज वहाँ पहुँच गया।
उसके दन्त, दन्त पर सरोवर, सरोवर-सरोवर पर कमल पत्र और पत्र-पत्र पर नवीन कमल के समान नेत्रों वाली, स्थूलस्तनवाली, गीर्वाणराय (देवराज) की सीमन्तिनियाँ (देवियाँ) नाचती हैं, ठहरती हैं
28 :: पासणाहचरिउ