________________
10/1
10/2
(166)
(167)
(168)
(169)
(170)
(171)
10/3
10/4
10/5
10/6
10/7 (172)
10/8
(173)
10/9
(174)
10/10
10/11
10/12
(177)
10/13 (178)
10/14 (179)
10/15 (180)
10/16 (181)
10/17
(182)
10/18 (183)
10/19
(184)
(175)
(176)
(185)
(186)
(187 )
(188)
(189)
(190)
11/1
11/2
11/3
11/4
11/5
11/6
11/7 (191)
11/8
(192)
11/9 (193)
11/10
(194)
11/11 (195)
11/12
(196)
78 :: पासणाहचरिउ
दसमी सन्धि (पृष्ठ 197-216)
भक्तजनों द्वारा पार्श्व की स्तुति एवं पार्श्व - विहार : वे कुशस्थल- नगर के नन्दन-वन में पहुँचते हैं
वनपाल द्वारा राजा रविकीर्ति के लिए नन्दन-वन में पार्श्व के समवशरण के आगमन की सूचना
पार्श्व प्रभु का श्रावक-धर्म पर प्रवचन
श्रावक धर्म पर प्रवचन (जारी)
अहिंसा ही परम धर्म है
पाँच अणुव्रतों एवं तीन गुणव्रतों का वर्णन | श्रावक-धर्म प्रवचन (जारी) चार शिक्षाव्रत। श्रावक-धर्म प्रवचन (जारी)
पार्श्व प्रभु शौरीपुर नगर में प्रवेश करते हैं
शौरीपुर के राजा प्रभंजन का धर्म-श्रवण हेतु समशरण में प्रवेश
राजा प्रभंजन जीवादि-तत्त्वों की जानकारी हेतु पार्श्व से प्रश्न पूछता है पार्श्व प्रभु द्वारा 84 लाख योनियों का वर्णन
धर्म - पालन के फल
वैराग्य का उपदेश
मनुष्य जन्म की दुर्लभता मिथ्यात्व की तीव्रता
संयम-धर्म के ग्रहण करने का उपदेश श्रामण्य-धर्म
दुर्लभ मनुष्य जन्म में श्रद्धान् करना आवश्यक प्रभंजन राजा का दीक्षा लेना
ग्यारहवीं सन्धि (पृष्ठ 217-242)
पार्श्व प्रभु विहार करते-करते वाणारसी पहुँचते हैं राजा हयसेन द्वारा पार्श्वप्रभु से जिज्ञासा भरे प्रश्न
जम्बूद्वीप एवं भरत क्षेत्र तथा सुरम्य- देश की समृद्धि का मनोहारी वर्णन
पोदनपुरी - नगरी की समृद्धि का वर्णन
पोदनपुरी के राजा अरविन्द का वर्णन
राजा अरविन्द की पट्टरानी प्रभावती का वर्णन राजपुरोहित विश्वभूति एवं उसके परिवार का वर्णन गुणज्ञ मरुभूति राजपुरोहित का पद प्राप्त करता है अनुजवधु- वसुन्धरी के साथ कमठ का प्रेम - व्यापार
रणविजेता मरुभूति घर लौट आता है, और अपनी भाभी से अपनी पत्नी वसुन्धरी के काले कारनामे सुनकर दुखी हो जाता है दुष्चरित्र कमठ को राजा अरविन्द निर्वासित कर देता है भ्रातृ-स्नेह का आदर्श उदाहरण
197
198
199
200
201
202
203
204
205
206
207
208
209
210
211
212
213
214
215
217
218
219
220
221
222
223
224
225
226
227
228