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छठी सन्धि (पृष्ठ 113-133)
कुमार पार्श्व ने सभी शत्रु-भटों को क्षमादान प्रदान किया
विजेता के रूप में कुमार पार्श्व रविकीर्ति के साथ कुशस्थल नगर में प्रवेश करते हैं : नगर-सजावट का वर्णन
शत्रु-मन्त्रियों द्वारा प्रार्थना किए जाने पर रविकीर्ति यवनराज को भी बन्धन - मुक्त कर देता है
वसन्त-मास का आगमन : वसन्त- सौन्दर्य-वर्णन : राजा रविकीर्ति अपने विश्वस्त मन्त्रियों के साथ मन्त्रणा - गृह में आता है
राजा रविकीर्ति अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह कुमार पार्श्व के साथ करने का निश्चय करता है । मुहूर्त शोधन के लिये वह ज्योतिषी को बुलवाता है राजा रविकीर्ति पार्श्व के सम्मुख अपनी पुत्री प्रभावती के साथ विवाह का प्रस्ताव रखता है
कुमार पार्श्व रविकीर्ति के साथ नगर में उस स्थल पर पहुँचते हैं, जहाँ अग्नि-तापस कठिन तपस्या कर रहे थे
कुमार पार्श्व जब तापसों की वृत्ति एवं प्रवृत्ति देख रहे थे, तभी कमठ नामका एक अशुभंकर तापस वहाँ आया
पार्श्व के कथन से रुष्ट होकर तथा उन्हें शाप देने का विचार करता हुआ क्रोधित कमठ लक्कड पर तीक्ष्ण कुठार चलाता है
खून से लथपथ भुजंग को देखकर पार्श्व को वैराग्य हो जाता है । णमोकार मन्त्र के प्रभाव से वह भुजंग मरकर धरणेन्द्र देव का जन्म प्राप्त करता है और इधर क्रोधित कमठ मरकर मेघमाली नामक असुरेन्द्र देव होता है
पार्श्व को वैराग्य । इन्द्र ने क्षीरसागर के पवित्र जल से उनका अभिषेक किया समग्र वस्त्राभूषणादि का त्याग कर पार्श्व ने दीक्षा धारण कर ली
गजपुर नगर में पार्श्व के आहार के समय पंचाश्चर्य प्रकट हुए
कुमार पार्श्व के दीक्षित हो जाने के कारण शोकाकुल रविकीर्ति को अकेले ही कुशस्थल लौटना पड़ता है
प्रिय - विरह में राजकुमारी प्रभावती का करुण-क्रन्दन पुत्र-वियोग में राजा हयसेन शोकाकुल हो जाते हैं
है
राजा हयसेन को शोकाकुल देखकर उनका मन्त्री उनको समझाता प्रिय पुत्र-वियोग में माता वामादेवी का करुण-क्रन्दन
महामति बुधजनों ने शोकाकुल माता वामादेवी को सम्बोधित किया। रविकीर्ति वाणारसी से अकेला ही वापिस कुशस्थल लौट आता है
सातवीं सन्धि (पृष्ठ 134-158)
पार्श्व मुनि की साधना का वर्णन, वे विहार करते हुए भीमावटी-वन में पहुँचते हैं
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