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74 :: पासणाहचरिउ
यवनराज की पराक्रम-शक्ति
राजा रविकीर्ति का शौर्य-वीर्य-पराक्रम
राजा रविकीर्ति का शौर्य-वीर्य-पराक्रम वर्णन
में
राजा रविकीर्ति की यवनराज के पाँच दुर्दान्त योद्धाओं से भिड़न्त दुर्धर पाँच यवन-भटों के पतन के बाद यवनराज के दुर्दान्त 9 पुत्र युद्ध उतरते हैं। रविकीर्ति अकेले ही उनके सिरों को विखण्डित कर डालता है शत्रु - राजा का प्रधान सैन्याधिकारी श्रीनिवास, राजा रविकीर्ति को अपने बाण-समूह से घेर लेता है
शत्रु- राजा का प्रधान सैन्याधिकारी श्रीनिवास, रविकीर्ति को बुरी तरह घायल कर देता है
राजा रविकीर्ति श्रीनिवास का वध कर डालता है
पद्मनाथ एवं रविकीर्ति का तुमुल-युद्ध
राजा रविकीर्ति द्वारा पद्मनाथ एवं उसके यवन - सुभटों का विनाश
पाँचवीं सन्धि (पृष्ठ 94-112)
क्रोधावेश में आकर यवनराज, राजा रविकीर्ति को अपने गज-व्यूह से घेर लेता है रौद्र रूप धारण कर राजा रविकीर्ति, यवनराज के अनेक मदोन्मत्त हाथियों
तथा उसके सुभटों को मार डालता है।
यवनराज ने मुँह की खाकर भी रविकीर्ति को गज-समूह से पुनः घिरवा लिया महामन्त्रियों का निवेदन सुनकर राजकुमार पार्श्व अक्षोहिणी सेना के साथ - प्रयाण करते हैं
कुमार - पार्श्व का रक्त - रंजित - समर - भूमि में प्रवेश
कुमार पार्श्व अपने रण कौशल से यवनराज के करीन्द्रों के छक्के छुड़ा देता है संहार - लीला से अत्यन्त क्रोधित हो उठता है संहार पर चिन्तित होकर अपने महाशत्रु
यवनराज अपने महागजों की यवनराज अपने गज-समूह के पार्श्व की शक्ति पर विचार करता है
यवनराज एवं कुमार पार्श्व का समर - भूमि में भर्त्सनापूर्ण वार्तालाप
विविध प्रहरणास्त्रों द्वारा दोनों में तुमुल- युद्ध
कुमार पार्श्व ने युद्ध में यवनराज के छक्के छुड़ा दिये
अपनी पराजय होती देखकर क्रुद्ध यवनराज, कुमार पार्श्व पर अमोघ शक्ति
प्रक्षेपास्त्र छोड़ता है
यवनराज की असाधारण शक्ति का वर्णन
कुमार पार्श्व के विषैले बाण से घायल वह यवनराज मूर्च्छित हो जाता है
दुर्धर यवनराज की पराजय
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