________________
बल्कि उनके माध्यम से हिन्दू-मुसलमानों अथवा हिन्दू राजाओं के पारस्परिक युद्धों के आँखों देखे अथवा विश्वस्त गुप्तचरों द्वारा सुने गये तथा युद्ध की विनाशलीला से झुलसे एवं आतंकित लोगों की करुण-व्यथाओं के संजीव चित्रण जैसे प्रतीत होते हैं।
ये युद्ध इतने भयंकर थे कि लाखों विधवाओं एवं अनाथ बच्चों के करुण-कन्दन देख-सुनकर संवेदनशील कवि को लिखना पड़ा था
तणुरुह दुक्करु रणंगणु रिअवाणांवलि विहिय णहंगणु।
संगरणामु जि होई भयंकरु तुरय-दुरय-रह सुहड खयंकरु ।। पास. 3/14/3-5 उसने उन युद्धों में प्रयुक्त जिन शस्त्रास्त्रों की चर्चा की है, वे पौराणिक, ऐन्द्रजालिक अथवा दैवी नहीं, बल्कि खुरपा, कृपाण, तलवार, धनुषबाण जैसे वे ही शस्त्र-अस्त्र हैं। जो कवि के समय में लोक-प्रचलित थे। आज भी वे हरियाणा एवं दिल्ली प्रदेश में उपलब्ध हैं और उन्हीं नामों से जाने जाते हैं। युवराज पार्व, रविकीर्ति और यवनराज
बुध श्रीधर ने पा.च. की तीसरी, चौथी एवं पाँचवी सन्धि में पार्श्व के यवनराज के साथ हुए युद्ध का वर्णन किया है। पार्श्व ने यह यद्ध अपने मामा रविकीर्ति द्वारा अपनी सहायता के लिए की गई प्रार्थना पर किया था और इसके लिए वे अपने पिता की आज्ञा लेकर रणक्षेत्र में पहुँचे थे। इस युद्ध में पार्श्व की विजय हुई। तत्पश्चात् रविकीर्ति ने अपनी कन्या का विवाह पार्श्व से कर देने का निश्चय किया।
पार्व का विवाह - विभिन्न मत
महाकवि विमलसूरी (तीसरी सदी) ने अपने 'पउमचरियं' में ऐसे ही एक प्रसंग का उल्लेख किया है, जिसके अनुसार राजा जनक की राजधानी को जब यवनों ने घेर लिया तब उन्होंने उनके साथ लोहा लेने के लिए महाराज दशरथ से सहायता माँगी थी। समाचार पाते ही राजा दशरथ ने उनकी सहायता हेतु राम को युद्ध के लिए भेजा था। राम ने जाकर यवनों से भीषण युद्ध किया और उन्हें बुरी तरह पराजित किया। प्रतीत होता है युग-प्रभावित महाकवि पउमकित्ति, बुध श्रीधर तथा अन्य परवर्ती अपभ्रंश-कवियों ने पउमचरियं के इस कथानक को अपने-अपने ग्रन्थों में उसे अपनी-अपनी शैली में ग्रहण किया है। ___ समवायांग-सूत्र तथा कल्पसूत्र में बुध श्रीधर द्वारा वर्णित उक्त प्रसंग की कोई चर्चा नहीं है और उनमें पार्श्व के विवाह के सम्बन्ध में भी कोई उल्लेख नहीं आया है। स्थानांगसूत्र में पार्श्व के विषय में यह सूचना अवश्य दी गई है कि उन्होंने कुमार-काल में ही दीक्षा ग्रहण कर ली थी। श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार कुमार-काल उनके राज्याभिषेक से पूर्व की स्थिति का है, न कि विवाह-पूर्व की कुमारावस्था का। उस परम्परा के अनुसार पाँच तीर्थंकर-वासुपूज्य, मल्लि, अरिष्टनेमि, पार्श्व और महावीर ने कुमार-काल में ही दीक्षा ग्रहण की थी।
बुध श्रीधर के अनुसार युवराज पार्श्व ने यवनराज को पराजित कर अपने मामा रविकीर्ति के साथ उसकी
1. पास. 2/17/11, 3/11-13 2. दे. पउमचरिउं 27वाँ उद्देश्य 3. पासणाह. 3/2 (डॉ. पी के मोदी द्वारा सम्पादित) की भूमिका, पृ. 38 4. पासणाह. (मोदी) भूमिका, पृ. 38 5. दे. वीरं अरिट्ठनेमिं पासं मल्लिं च वासपुज्जं च। एए मोत्तूण जिणे अवसेसा आसि राजाणो।
रायकुलेसु वि जाता विसुद्धं सेसु खत्तिय कुलेसु। ण इत्थियाभिसेया कुमार पव्वइया ।। आवश्यक नियुक्ति-256, 257 ।।
प्रस्तावना :: 45