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वनस्पति-वर्णन
जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि कवि श्रीधर की विविध वनस्पतियों का वर्णन भी कम आश्चर्यजनक नहीं। अटवी-वर्णन के प्रसंग में विविध प्रकार के वृक्ष, पौधे, लताएँ, जिमीकन्द आदि के वर्णनों में कवि ने मानों सारे प्रकृतिजगत् को साक्षात् उपस्थित कर दिया है, आयुर्वेद एवं वनस्पतिशास्त्र के इतिहास की दृष्टि से कवि की यह सामग्री बड़ी महत्वपूर्ण है। कवि द्वारा वर्णित वनस्पतियों का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है'शोभावृक्ष - हिंताल, तालूर, साल, तमाल, मालूर, धव, धम्मन, वंस, खदिर, तिलक, अगरत्य,
प्लक्ष, चन्दन। फलवृक्ष
आम्र, कदम्ब, नींबू, जम्बीर, जामुन, मातुलिंग, नारंगी, अरलू, कोरंटक, अंकोल्ल, फणिस, प्रियंगु, खजूर, तिन्दुक, कैथ, ऊमर, कठूमर, चिंचिणी (चिलगोजा) नारियल,
वट, सेंवल, ताल। पुष्पवृक्ष - चम्पक, कचनार, कणवीर (कनैर), टउह, बबूल, जासवण्ण (जाति, शिरीष)
पलाश, बकुल, मुचकुन्द, अंक, मधुवार । फल एवं पुष्पलताएँ - लवंग, पूगफल, सिरिहिल्ल, सल्ल, केतकी, कुरवक, कर्णिकार, पाटलि, सिन्दूरी,
द्राक्षा, पुनर्नवा, बाण, वोर, कच्चूर । कन्द
- जिमीकन्द, पीलू, मदन एवं गंगेरी। बुध श्रीधर के उक्त वनस्पति-वर्णन ने परवर्ती कवियों में सूफी कवि जायसी को सम्भवतः बहुत अधिक प्रभावित किया है। इस प्रसंग में जायसीकत पदमावत' के सिंहलद्वीप वर्णन (2/10-13) एवं वसन्तखण्ड (2/10-13) के अंश पासणाहचरिउ के उक्त अंश से तुलनीय हैं। दोनों के अध्ययन से यह प्रतीत होता है कि जायसी के उक्त वर्णन श्रीधर के वर्णन के पल्लवित एवं परिष्कृत रूप हैं। पार्श्व के लिए प्रदत्त लौकिक शिक्षाएँ
पासणाहचरिउ में कुमार पार्श्व के लिए जिन शिक्षाओं को प्रदान किए जाने की चर्चा आई हैं, वे प्रायः समकालीन लोक-प्रचलित एवं क्षत्रिय राजकुमारों तथा अमीर-उमराओं को दी जाने वाली लौकिक शिक्षाएँ ही हैं। कवि ने इस प्रसंग में किसी प्रकार का साम्प्रदायिक व्यामोह या अतिशयोक्ति न दिखाकर विशद्ध यथार्थ लौकि रूप को ही प्रदर्शित किया है। इनमें मध्यकालीन शिक्षा-प्रणाली का संकेत मिलता है। इन शिक्षाओं का विभाजन निम्न चार वर्गों में किया जा सकता है:___ 1. आत्मविकास एवं जीवन को सर्वांगीण बनाने वाली विद्याएँ (साहित्य)- श्रुतांग, वेद, पुराण,
आचार-शास्त्र, व्याकरण, सप्तभंगी-न्याय, लिपिशास्त्र, लेखन-क्रिया (चित्र-निर्माण-विधि) सामुद्रिक
शास्त्र, कोमल काव्य-रचना, देश्यभाषा-कथन, नवरस, छन्द, अलंकार, शब्द-शास्त्र एवं न्यास-दर्शन। 2. राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु आवश्यक विद्याएँ - गज एवं अश्वविद्या शरशस्त्रादि संचाल, व्यूहन, संरचना,
असि एवं कुन्तसंचालन, मुष्टि एवं मल्लयुद्ध (Boxing and Wrestling) असि-बन्धन, शत्रु-नगररोधन, रणमुख में ही शत्रु-रोधन, अग्नि एवं जल-बन्धन, वज्र-शिला-बँधन, अश्व-धेनु एवं गजचक्र का मूल बन्धन।
1. पासणाह. 7/2 2. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा सम्पादित एवं साहित्य सदन चिरगाँव, झाँसी (सन 1955) से प्रकाशित। 3. पासणाहचरिउ, 2/17
प्रस्तावना :: 65